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________________ ( १०८ ) जाता है, क्योकि अखण्ड स्वभाव पर दृष्टि आने से उसके ज्ञान को भी अखण्ड कहा जाता है। प्रश्न १७-भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने 'इन्द्रियो के विषयभूत पदार्थों का जीतना किसे कहा है ? उत्तर-भगवान की वाणी, शास्त्रादि भावेन्द्रिय द्वारा ग्रहण करने मे आवे, वे इन्द्रियो के विषयभूत पदार्थ है वे सगरूप हैं और भगवान आत्मा असग स्वभावी है । पात्र जीव ऐसा जाने कि 'इन्द्रियो के विपयभूत पदार्थ तो सगरूप है, परन्तु मेरा असग स्वभाव एक रूप है ऐसा जानकर असग स्वभाव का आश्रय-ज्ञान-आचरण वर्ते, उसे इन्द्रियो के विषयभूत पदार्थों का जीतना कहा है। प्रश्न १८-इन्द्रियो के विषयभूत पदार्थों का ग्राह्य ग्राहक के ज्ञान का असंगपना कब कहा जा सकता है ? उत्तर-(१) जो कोई इन्द्रियो के विषय है तथा रागादि हैं । वे सब जानने योग्य पर ज्ञय है। वे । परज्ञ य) ग्राह्य है और इन सवको जानने वाली ज्ञान पर्याय वह ग्राहक है। वास्तव मे परजय और ज्ञान की पर्याय सर्वथा भिन्न है परन्तु जहाँ तक ग्राहक ऐसी जो ज्ञान की पर्याय पर ज्ञयो को ग्राह्य बनाती है। वहाँ तक अज्ञानी को दोनो का (परज्ञ य और ज्ञान पर्याय का) एकपना अनुभव मे आता है। (२) जब ग्राहक ऐसी जो ज्ञान की पर्याय परज्ञ यो की तरफ से हटकर स्वज्ञ य ऐसा जो निज चैतन्य तत्त्व को ग्राह्य बनाती है । तब अपनी चैतन्य शक्ति का असगपना अनुभव मे आता है । यह ही इन्द्रियो के विषयो का जीतना है। इसलिए ज्ञान की पर्याय जो ग्राहक है वह (ज्ञान की पर्याय ग्राहक) अपने पारिणामिक भाव को ग्राह्य बनाती है तब सच्चा ग्राहक-ग्राह्यपने का असगपना दृष्टि मे आता है । प्रश्न १६-ज्ञान का स्वभाव कैसा है ? उत्तर-समस्त पदार्थों को जानने पर भी उस रूप नही होता है और उन सब पदार्थों से भिन्न ही रहता है । समस्त विश्व को जानने
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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