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( १०७ ) प्रश्न १४-भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने 'भावेन्द्रियों का जीतना किसे कहा है ?
उत्तर-कर्ण भावेन्द्रिय शब्द को जानती है, उसी प्रकार एक-एक इन्द्रिय अपने अपने विषय द्वारा ज्ञान को खण्ड-खण्ड रूप जानती है वह भावेन्द्रिय खण्ड-खण्ड ज्ञान क्षयोपशमिक रूप है। भावेन्द्रियो के सामने अपना अखण्ड ज्ञायक स्वभाव है। पात्र जीव ऐसा जाने कि क्षायौपशनिक खण्ड-खण्ड ज्ञान जितना मेरा स्वभाव नहीं है, परन्तु अखण्ड ज्ञान मेरा स्वभाव है ऐसा अनुभव ज्ञान-आचरण करे तो यह भावेन्द्रियो को जीतना कहा है। अखण्ड ज्ञायक स्वभाव द्वारा भावेन्द्रियो को सर्वथा अपने से भिन्न अनुभव करना, भावेन्द्रिय का जीतना है।
प्रश्न १५-रागद्वष वाले मे और भगवान मे क्या अन्तर है ?
उत्तर-(१) रागद्वेष वाले की वाणी खण्ड-खण्ड रूप होती है, भगवान की वाणी अखण्ड होती है। (२) राग-द्वेष वाला क्रम से जानता है, भगवान युगपत् परिपूर्ण जानते है । (३) राग द्वेप वाला मन द्वारा विचारता है, भगवान का ज्ञान परिपूर्ण होने से उनको विचार नहीं करना पड़ता है। (४) राग द्वोष वाले का पैर आगे-पीछे पडता है भगवान डग नही भरते हैं । (५) रागद्वेष वाले को क्षायोपशामिक ज्ञान अल्प है। भगवान का क्षायिक ज्ञान पूर्ण है। (६) रागद्वेष वाले को क्षायोपशमिक ज्ञान मे पूर्ण ज्ञेय नही आता है, भगवान को सम्पूर्ण लोकालोक ज्ञेय हैं। (७) रागद्वप वाले की आँखे निमेष (पलक) मारती है, भगवान की आंखे निमेष (पलक) नही मारती है।
प्रश्न १६-'भावेन्द्रियो का जीतना' कौन से गुणस्थान से शुरू हो जाता है ?
उत्तर-चौथे गुणस्थान में अपना ज्ञायक अखण्ड स्वभाव अनुभव मे आ जाता है। तब से खण्ड-खण्ड क्षायोपशमिक ज्ञान समाप्त हो