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प्रश्न १० – अपनी आत्मा को अन्य द्रव्यो से अधिक (जुदा ) जानता है, इस पर से कितने बोल निकलते हैं ?
उत्तर - चार बोल निकलते है - ( १ ) जब अपनी आत्मा को कहा, तब अन्य सव अद्रव्य है । ( २ ) जब अपनी आत्मा को जीव कहा, तब अन्य सब अजीव है । (३) जब अपनी आत्मा को अतीन्द्रिय कहा, तब अन्य सब इन्द्रिय है (४) जब अपनी आत्मा को ज्ञायक कहा, तब अन्य सव ज्ञ ेय हैं अर्थात् अपनी आत्मा को जब द्रव्य, जीव, अतीन्द्रिय और ज्ञायक कहा, तब उसकी अपेक्षा अन्य सव द्रव्य, अद्रव्य, अजीव, इन्द्रिय और ज्ञ ेय है ।
प्रश्न ११ – 'इन्द्रिय' शब्द पर से भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने कितने बोल निकाले हैं ?
उत्तर - तीन बोल निकाले है - ( १ ) द्रव्येन्द्रियो, (२) भावेन्द्रियो ( खडखड ज्ञान), (३) इन्द्रियो के विषयभूत पदार्थों (शास्त्र पढना, दिव्यध्वनि सुनना, पूजा-पाठ आदि ।
प्रश्न १२ – भगवान अमृतचन्द्रचार्य ने द्रव्येन्द्रियो का जीतना किसे कहा है ?
उत्तर - (१) अन्तरग मे, (२) प्रगट अति सूक्ष्म, (३) चैतन्य स्वभावी अपनी भगवान आत्मा को, (४) बहिरंग मे, (५) प्रगट अतिस्थूल, (६) जड स्वभावी जड इन्द्रियो से, (७) निर्मल, (८) भेदाभ्यास की ; ( 8 ) प्रवीणता के द्वारा सर्वथा अलग किया, उसे द्रव्येन्द्रियो को जीतना कहा है। इस प्रकार नौ बोल आए है । जड इन्द्रियो से ज्ञायक को भिन्न रूप से अनुभव करना द्रव्येन्द्रियो का जीतना है ।
प्रश्न १३ - अज्ञानी द्रव्येन्द्रियो का जीतना किसे कहता है ?
उत्तर- आँख फोड लो, कान मे डट्ठे ठोक लो, मुह को बन्द कर लो, आदि को द्रव्येन्द्रियो को जीतना कहता है । यह सब जड की क्रिया है, इसे अपनी मानना, अनन्त ससार का कारण है ।