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________________ ( १०५ ) ले तो कभी भी ए बिना स्तुप कभी भी श्रद्धान भी नहीं है। ऐसा चारो अनुयोगो मे बताया है। [समयसार गा० २७५] प्रश्न ७-निश्चय स्तुति कैसे प्रगट होवे ? उत्तर--जिनेन्द्र भगवान के कहे अनुसार तत्त्व का अभ्यास करके सम्यग्दर्शन प्रगट करे, तब निश्चय स्तुति प्रगट होती है। प्रश्न ८-वर्तमान में जितने दिगम्बर धर्मी आत्मा के अनुभव बिना स्तुति, पूजा, सामायिक करते हैं और उसे करते-करते मोक्षमार्ग प्रगट हो जावेगा ऐसा मानते हैं । क्या वे सब पागल ही हैं ? उत्तर-जसे-कोई दिल्ली जाने के लिए कलकत्ता की सड़क पर चले तो कभी भी दिल्ली नहीं पहुंच सकता है, उसी प्रकार अपनी आत्मा का अनुभव हुए विना स्तुति, पूजा, सामायिक, महाव्रतादि करके मर भी जावें तो उससे मोक्षमार्ग कभी भी प्रगट नही होगा। परन्तु मोक्षमार्ग के बदले चारो गतियो की हवा खाता हुआ निगोद पहुच जावेगा । जैसे-एक के अक बिना विन्दियो की कीमत नही होती, उसी प्रकार आत्मा के अनुभव हुए विना दिगम्बर धर्मियो के पूजास्तुति आदि सब अरण्य रुदन है। इसलिए आत्मा को समझे विना व्रतादि करने वाले सव पागल ही हैं। क्योकि कुन्दकुन्द भगवान ने समयमार गा० १५३ मे कहा है-व्रत और नियमो को धारणा करते हुए भी तथा शील तप करते हुए जो परमार्थ से वाह्य है अर्थात् आत्म । अनुभव-ज्ञान से रहित हैं वे निर्वाण को प्राप्त नही होते है। प्रश्न :-कुन्दकुन्द भगवान ने समयसार गा० ३१ मे निश्चय स्तुति किसे कहा है ? उत्तर-मूल गाथा में इन्द्रियो को जीतकर ज्ञान स्वभाव के द्वारा अन्य द्रव्य से अधिक (जुदा) आत्मा को जानते है (अनुभवते हैं) उन्हे जो निश्चयनय मे स्थित साध है वे वास्तव मे जितेन्द्रिय (निश्चय स्तुति) कहते हैं। आ निगोद
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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