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________________ ' ( १०३ ) सप्तम प्रकरण समयसार गाथा १६ से ३८ तक का रहस्य निश्चय स्तुति प्रश्न १- जितेन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तर कर इन्द्रियजय ज्ञान स्वभाव रू, अधिक जाने आत्म को । निश्चय विषे स्थित साधुजन, भाषै जितेन्द्रिय उन्हीं को ॥ ३१ ॥ अर्थ - जो इन्द्रियो को जीतकर ज्ञान स्वभाव के द्वारा अन्य द्रव्य से अधिक ( भिन्न) आत्मा को जानते है ( अनुभवते है) उन्हे जो निश्चयtय मे स्थित साधु है वे वास्तव में जितेन्द्रिय कहते हैं । प्रश्न २ - तीर्थंकर की वस्तु स्थिति क्या है ? उत्तर- जिससे तिरा जाता है, ऐसा सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्र वह तीर्थ अपने मे ही है । 'कर' अर्थात प्रगट करे । सम्यग्दर्शन - ज्ञान चारित्र अपनी आत्मा मे प्रगट होवे, वह तीर्थंकर की निश्चय स्तुति है । प्रश्न ३ – निश्चय स्तुति की शुरूआत कब से होती है ? उत्तर - चौथे गुणस्थान से निश्चय स्तुति की शुरूआत होती है । प्रश्न ४ - निश्चयस्तुति कितने प्रकार की है और वह किस-किस जीव को होती है तथा उसका फल क्या है ? उत्तर - तीन प्रकार की है । (१) ४, ५, ६ गुणस्थान मे जघन्य निश्चय स्तुति होती है । (२) सातवे गुणस्थान से ११ वे गुणस्थान तक मध्यम निश्चयस्तुति होती है । (३) सांतवे से १२ वे गुणस्थान तक उत्तम निश्चयस्तुति होती है और १३, १४ वाँ गुणस्थान तथा सिद्धदशा निश्चयस्तुति का फल है । प्रश्न ५ - हम मन्दिर मे स्तुति बोलते हैं । अष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा करते हैं। क्या यह हमारी निश्चयस्तुति नहीं है ?
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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