SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न २१-ज्ञेय के अनुसार ज्ञान नहीं होता, परन्तु ज्ञान के उघाड के कारण ज्ञय जाना जाता है कोई और उदाहरण देकर समझाइये ? उत्तर-कालिज मे प्रिंसिपल बहुत से लडकों को एक साथ एक सा पाठ पढाता है । क्या सब लडको को एक सा ज्ञान होता है ? आप कहेगे--कभी भी नही। अत यह सिद्ध हुआ ज्ञय के अनुसार ज्ञान नही होता परन्तु ज्ञान के उघाड़ के अनुसार ज्ञय जाना जाता है। प्रश्न २२-ज्ञेय के अनुसार ज्ञान नहीं होता, परन्तु ज्ञान के उघाड़ के अनुसार ज्ञेय जाना जाता है-इसमे क्या रहस्य है ? उत्तर-जैसे आत्मा मे अनन्त गुण हैं। उस प्रत्येक गुण का उसकी पर्याय से तो सम्बन्ध कहो परन्तु पर से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नही है। क्योकि विश्व मे जीव अनन्त, पुद्गल अनन्तानन्त, धर्म अधर्म, आकाश एक-एक और काल लोक प्रमाण असख्यात हैं। प्रत्येक द्रव्य मे अनन्त-अनन्त गुण हैं। प्रत्येक गुण अनादिअनन्त कायम रहता हुआ अपनी-अपनी प्रयोजन भूत क्रिया करता हुआ स्वय बदलता रहता है ऐसा वस्तु स्वभाव है। यह बात जिसके ज्ञान मे आ जावे तो अनन्त ससार का अभाव होकर मोक्ष लक्ष्मी का नाथ बन जावे । ज्ञय के अनुसार ज्ञान नहीं होता परन्तु ज्ञान के उघाड के अनुसार ज्ञेय जाना जाता है यह उसका रहस्य है। प्रश्न २३-जय-ज्ञायक के सबध मे फलश २१६ का भाव क्या है ? उत्तर-वास्तव में किसी द्रव्य का स्वभाव किसी अन्य द्रव्य रूप नही होता। जैन-चाँदनी पृथ्वी को उज्ज्वल करती है किन्तु पृथ्वी चांदनी की किचित मात्र भी नही होती, उसी प्रकार ज्ञान ज्ञेय को जानता है किन्तु ज्ञय ज्ञान का किंचित मात्र भी नही होता । आत्मा का ज्ञान स्वभाव है इसलिए ज्ञान की स्वच्छता मे ज्ञय स्वयमेव झलकता है किन्तु ज्ञान मे ज्ञेयो का प्रवेश नहीं होता है। प्रश्न २४-ज्ञय-ज्ञायक के सम्बन्ध मे कलश २१५ मे क्या बता
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy