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उत्तर - (१) आत्मा का ज्ञान पर्याय के साथ सम्वन्ध है ज्ञेय 'पदार्थों के साथ सम्बन्ध नही है - यह वात यथार्थ है । (२) अज्ञानी आत्मा का भी रागद्वेषादि भावो से सम्बन्ध है द्रव्यकर्म - नोकर्म के -साथ सर्वथा सम्बन्ध नही है यह बात यथार्थ है । (३) सुख-दुख का सम्बन्ध सुख गुण की सुख-दुख पर्याय से है पदार्थों के साथ सबध नही है - यह बात यथार्थ है । (४) सम्यग्दर्शन का सम्बन्ध आत्मा के श्रद्धा गुण से है देव-गुरु-शास्त्र से, दर्शन मोहनीय उपशमादि से सर्वथा सम्बन्ध नही है = यह बात यथार्थ है । ( ५ ) केवलज्ञान का सम्वन्ध ज्ञान गुण से है वज्रवृषभ नाराचसहनन, चौथाकाल, ज्ञानावरणीय के अभाव से सर्वथा सम्वन्ध नही है - यह बात यथार्थ है ।
तात्पर्य है कि 'निश्चय से पर के साथ आत्मा का कारकता का -सम्बन्ध नही है कि जिससे शुद्धात्म स्वभाव की प्राप्ति के लिए बाह्य सामग्री ढूंढने की व्यग्रता से जीव व्यर्थ ही परतन्त्र- दुखी होकर आकुलित होते है ।' [ प्रवचनसार गाथा १६ की टीका से ]
प्रश्न १० - शास्त्रो मे आता है जीव ज्ञानावरणीय आदि कर्म रूप पुद्गल पिण्ड का कर्ता है ज्ञय से ज्ञान होता है - सो वहाँ क्या समझना चाहिए ?
उत्तर - कहने को तो है, वस्तु स्वरूप विचारने पर कर्त्ता नही है, क्योकि व्यवहार दृष्टि से ही कहने के लिए सत्य है वस्तु स्वरूप का विचार करने पर झूठा है।
प्रश्न ११ - शास्त्रो मे व्यवहार कथन किस प्रकार के होते हैं, उनके लिए जिन वाणी ने क्या दृष्टान्त दिए हैं ?
उत्तर- (१) जैसे हाथों के दांत बाहर देखने के जुदे हैं तथा भीतर चबाने-खाने के जुदे हैं । वैसे ही जैन ऋषि, मुनि और आचार्यों के रचे हुए सिद्धान्त शास्त्र, सूत्र और पुराणादि है वे तो हाथी के बाहर के दातो समान समझना तथा भीतर का यथार्थ आशय जिसका जो वही जानता है । यह दृष्टान्त ऐसा सूचित करता है कि शास्त्रो मे