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छठा प्रकरण समयसार गाथा ३४६ से ३५२ तक का रहस्य
ज्ञान और ज्ञय की भिन्नता
प्रश्न १-ज्ञय के अनुसार ज्ञान होता नहीं, परन्तु ज्ञान के उघाड़ के अनुसार ज्ञय जाना जाता है। इस विषय मे नाटक समयसार सर्व विशुद्धि द्वार ५३ मे क्या बताया है ?
उत्तरज्ञयाकार ग्यान की परिणति, पै वह ज्ञान ज्ञेय नहि होइ। क्षयरूप षट दरव भिन्न पद, ग्यानरूप आतमपट सोई॥ जान भेद भाउ सुविचछन, गुन लच्छन सम्यक द्रिग जोई। मूरख कहैं ग्यानमय आकृति, प्रगट कलंक लख नहि कोई ।। विशेष अर्थ-जीव पदार्थ ज्ञायक है ज्ञान उसका गुण है वह अपने ज्ञान गुण से जगत के छहो द्रव्यो को जानता है और अपने को भी जानता है । इसलिए जगत के सब जीव-अजीव पदार्थ और वह स्वय आत्मा ज्ञेय है और आत्मा स्वपर को जानने से ज्ञायक है। भाव यह है आत्मा ज्ञय भी है और ज्ञायक भी है । आत्मा के सिवाय सब पदार्थ ज्ञय है । जब कोई शेय पदार्थ ज्ञान में प्रतिभासित होता है तव ज्ञान की ज्ञयाकार परिणति होती है। पर ज्ञान ज्ञान ही रहता है जय नही हो जाता और ज्ञय ज्ञेय हो रहता है, ज्ञान नहीं हो जाता, न कोई किसी मे मिलता है। ज्ञेय का स्वचतुष्टय जुदा रहता है और ज्ञायक का स्वचतुष्टय जुदा रहता है। परन्तु विवेकशून्या वैशेषिक आदि ज्ञान मे ज्ञय की आकृति देखकर ज्ञान मे अशुद्धता ठहराते हैं यह मिथ्या मान्यता है।
प्रश्न २-ज्ञेय के अनुसार ज्ञान नही होता परन्तु ज्ञान के उघाड़