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और साधुपना क्या है । (ई ) श्रावकपना सम्यग्दृष्टिपना क्या है और श्रावक सम्यग्दृष्टि क्या करते हैं । ( उ ) अनादि से मिथ्यादृष्टि क्या करते हैं और मिथ्यादृष्टिपना क्या है | आदि सब बातो का पता 'चल जाता है (११) समस्त जिन शासन का पता चल जाता है । (१२) देव गुरुशास्त्र क्या है इसका पता भी शुद्धनय के जानने पर ही होता है । इसलिए हे जीव । तू एक वार अनादिअनन्त अपने 'शुद्ध नय का आश्रय ले तो सादिसांत दशा प्रगट होकर सादिमनन्त दशा को प्राप्ति हो जाती है । यह १०वाँ कलश तथा गा० १४ का रहस्य है ।
श्रावक का आचरण
रात्रि भोजन में हिंसा होती है, इसलिए श्रावक को उसका त्याग होता हो है। इसी प्रकार अनछने पानी मे भी त्रतजीव होते हैं । शुद्ध और मोटे कपडे से छानने के पश्चात् ही श्रावक पानी पीता है । अस्वच्छ कपड़े से छाने तो उस कपडे के मैल मे ही जीव होते हैं; इसलिये कहते हैं कि शुद्ध वस्त्र से छने हुए पानी को काम मे लेवें। रात्रि को तो पानी पिये हो नहीं और दिन मे छानकर पिये । रात्रि को त्रसजीवो का संचार बहुत होता है; इसलिये रात्रि के खान-पान में सजीवों की हिंसा होती है । जिसमे सहसा होती है - ऐसे किसी कार्य के परिणाम व्रती श्रावक को नहीं हो सकते ।
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- पूज्य श्री कानजी स्वामी श्रावक धर्म प्रकाश, पृष्ठ ५३-५४ ( नया सस्करण)