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और स्थिर करता है उसने शुद्धनय को जाना । वास्तव मे इस गाथा मे पाँच प्रकार से कथन किया है। आचार्य भगवान को पात्र भव्य जीवो के प्रति करुणा है कि किसी भी प्रकार इस अज्ञानी जीव का अज्ञान मिटकर धर्म की प्राप्ति हो वास्तव मे प्रथम बोल के समझने से ही कल्याण हो जाना चाहिए जो इतने से नही समझा उमे दूसरे वोल से; फिर तीसरे वोल से; फिर चौथे बोल से और फिर पाँचवे बोल से समझाया है । यदि पात्र जीव समझ जावें तो स्वय भगवान बन जाता है और यदि ना समझे तो चारो गतियो मे घूमकर निगोद चला जाता है । अवद्धस्पृष्टादि को समझने से मोक्ष का पथिक वने । यह तात्पर्य पाँच बोलो से है ।
प्रश्न ३५ - जो शुद्धनय को जान जाता है । उसका फल अनादि से जिन जिनवर और जिनवर वृषभो ने क्या-क्या बताया है ?
उत्तर - (१) मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इन पाँच कारणों का अभाव होकर मोक्ष का पथिक वन जाता है । (२) द्रव्य, क्ष ेत्र, काल, भव और भावरूप पाँच परावर्तन का अभाव होकर क्रम से सिद्ध दशा को प्राप्ति इसका फल है । (३) पच परमेष्टियो मे उसकी गिनती होने लगती है । (४) चारो गतियों का अभाव होकर पचम गति मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । (५) आंदायिकादिभावो से दृष्टि हटकर परम पारिणामिक भाव का महत्व आ जाता है (६) आठ कर्मों का अभाव हो जाता है । (७) गुणस्थान, मार्गणा और जीवसमास से दृष्टि हटकर अपने भगवान का पता चल जाता है । (८) श्री समयसार गाथा ५० से ५५ तक कहे २९ बोलो से दृष्टि हटकर अपने भगवान का पता चल जाता है । ( 8 ) मैं ज्ञायक और लोकालोक ज्ञ ेय है ऐसा पता चल जाता है । (१०) शुद्धनय का पता चलते ही ( अ ) सिद्ध भगवान क्या करते है ओर सिद्धदगा क्या है | ( आ ) अरहत भगवान क्या करते हैं और अरहत दशा क्या है । (इ) आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधु क्या करते है और आचार्य उपाध्याय