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( ८८ ) "प्रश्न ८८-आप्त किसे कहते हैं ?
उत्तर-जीव का परम हित मोक्ष है उसके उपदेप्टा वह आप्त है आप्त दा प्रकार का है एक मूल आप्त अरही देव हैं और उत्तर आप्त गणधगदिक, मुनि, श्रावना और सम्यग्दृष्टि भी उत्तर आप्त मे आते है। क्योकि वह भी उन्ही के अनुसार वीतराग, सर्वज्ञ और हित का उपदेश देते है। इसलिए पान जीवो को जानियो का सत्सग करना चाहिए अज्ञानियों का नहीं। [भावदीपिका]
प्रश्न ८६-आगम किसे कहते हैं ?
उत्तर-आगम अर्थात् दिव्यध्वनि जिनवाणी है जो परम्परा या माक्षात् एक वीतरागभाव का पोषण करे वह आगम है, क्योकि आगम का तात्पर्य दुख का अभाव सुख की प्राप्ति है। अव कलिकाल के दोष से कपायी पुरुपो द्वारा शास्त्रो मे अन्यथा अर्थ का मेल हो गया है इसलिए जैन न्याय के शास्त्रो की ऐसी आना है कि (१) आगम का सेवन (२) युक्ति का अवलम्बन (३) पर और अपर गुरु का उपदेश (४) स्वानुभव, इन चार विशेपो का आश्रय करके अर्थ की सिद्धि करके ग्रहण करना, क्योकि अन्यथा अर्थ के ग्रहण होने से जीव का बुरा होता है।
प्रश्न ६०-पदार्थ किसे कहते हैं ?
उत्तर--पद का अर्थ अर्थात् प्रयोजन, उसको पदार्थ कहते हैं। नौ प्रकार के पदार्थो का स्वरूप जैसा जिनागम मे कहा है, वैसे ही स्वरूप सहित ग्रहण करना चाहिए, क्योकि यह प्रयोजनभूत पदार्थ है। जैसा स्वरूप कहा है उस ही स्वरूप करि ग्रहण करना मोक्ष का कारण है । अन्यथा स्वरूप का ग्रहण करने से ससार परिभ्रमण होता है।
प्रश्न ६१-आपने देव, गुरु, धर्म आप्त, आगम और पदार्थों को मोक्ष के कारण (निमित्त) बताये हैं यह क्यो बताये हैं ?
उत्तर-इन छह निमित्तो मे से एक की भी हानि हो जावे तो सोक्षमार्ग की हानि हो जाती है क्योकि .-(१) देव न होय तो