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( ८६ ) पर्वत है, ये वृक्ष हैं, यह मनुप्य है, यह हाथी है, यह घोडा है, यह चिडिया है, यह स्यार, यह सिंह है, यह सूर्य है, यह चन्द्रमा है, यह लडका है, यह लकी है, यह जयपुर नरेश है, यह राष्ट्रपति है, यह बहू है, इत्यादि समानजातीय और असमानजातीय द्रव्य पर्यायो मे द्रव्यवुद्धि को धारण करता है, उनका पृथक्-पृथक् सत्त्व मानता है। अर्थात् वर्तमान क्षणिक पर्यायो को ही द्रव्य मानता है । कालिक सत्ता सहित गुण पर्यायरूप द्रव्य नहीं मानता है यह दृष्टिगोचर पुद्गल पर्यायो मे द्रव्य बुनिरूप मिथ्यात्वभाव है।
प्रश्न ८०-अष्टिगोचर द्रव्य-गुण-पर्यायो में अभाव बुद्धिरूप मिथ्यात्वभाव क्या है?
उत्तर-(१) जो दृष्टिगोचर नही ऐसे जो दर क्षेत्रवर्ती, (२) हो कर नाश हो गई, (३) अनागत मे होगी, (४) इन्द्रियो से अगोचर सूक्ष्म पर्याय इत्यादिक जो अपनी और पर की है उनको अभावरूप मानता है । इनका सत्व हो चुका, होयेगा, या वर्तमान मे है, ऐसा नही मानता है इत्यादि सव मिथ्यावभाव है।
प्रश्न ८१-आपने जो आठ प्रकार का मिथ्यात्वभाव बताया है यह कैसा मिथ्यात्व है और क्यो है ?
उत्तर-यह अगृहीत मिथ्यात्व है। विना सिखाये अनादि से एकएक समय करके चला आ रहा है। पर भाव योग्य सर्व पर्याय, सदाकाल, सर्व क्षेत्र मे, मिथ्यादृष्टियो के प्रवर्तता है। किसी के द्वारा कदाचित उपदेशित नही, इस वास्ते इसे अगृहीतमिथ्यात्व कहा है।
प्रश्न ८२-गृहीत मिथ्यात्व क्या है ?
उत्तर-(१) देव (२) गुरु (३) धर्म (४) आप्त (हितउपदेशक) (५)आगम (६) नौ पदार्थ इनका उल्टा श्रद्धान यह गृहीत मिथ्यात्व है।
प्रश्न ८३-जीव का प्रयोजन क्या है ?
उत्तर-दुख का अभाव और सुख की प्राप्ति यह ही एक मात्र जीव का प्रयोजन है।