________________
( ६६ ) इमलिए प्रत्येक आत्मार्थी को अनन्तशक्ति सम्पन्न अपने ज्ञायक स्वभाव को दृष्टि मे लेना ही मनुष्य जन्म का सार है।
प्रश्न २१५-आत्मा प्रसिद्ध हुई ऐसा कव कहा जा सकता है ?
उत्तर-मेरी आत्मा का पर द्रव्यो से तो किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नही है। मेरी आत्मा मे असख्यप्रदेश, अनन्त शक्तियाँ, एकएक शक्ति मे अनन्त सामर्थ्य है । मेरी किसी भी शक्ति मे उसके किसी भी प्रदेश मे विकार नही है। पुण्य-पाप के विकल्पो से भिन्न अनन्त गुण सम्पन्न अपनी आत्मा को अनुभव करने पर ही 'आत्मा की प्रसिद्धि होतो है । इसलिए हे भव्यो । अपनी आत्मा का अनुभव करो यह जैन शासन का सार है।
प्रश्न २१६-४७ शक्तियो का स्वस्प स्पर समझाओ?
उत्तर-आत्म वैभव मे पूज्य श्री कानजी स्वामी ने अलौकिक रीति से ४७ शक्तियो का स्वरूप प्रवचन द्वारा समझाया है उसमे देखियेगा आपको अपूर्व आनन्द आवेगा।
॥ अनेकान्त-स्याद्वाद प्रथम अधिकार समाप्त ॥
-::
मोक्ष-मार्ग दूसरा अधिकार इस भव तरूका मूल इक जानहु मिथ्याभाव । ताओं करि निर्मूल अब करिए मोक्ष उपाय ॥१॥ शिव उपाय करते प्रथम कारन मंगल रूप । विघन विनाशक सुख करन नर्मों शुद्धाशिवभूप ॥२॥ अर्थ-इस भवरूपी वृक्ष का मूल एक मिथ्यात्व भाव है उसको