________________
( ६३ )
यथार्थ स्वरूप के ज्ञान बिना ही व्यतीत कर दिया है। अहा । स्याद्वादअनेकान्त मेरा स्वभाव जयवन्त वर्तता है। ऐसा स्याद्वाद अनेकान्त स्वरूप ही दुख का अभाव करने वाला और सुख का देने वाला है । हे ससार के प्राणियो, ऐसे अनेकान्त - स्याद्वाद स्वरूप की पहिचान करो ।
प्रश्न २०० - दुख से छुटने के लिए और सुखी होने के लिये क्या करना चाहिये
?
उत्तर - अनन्त शक्ति सम्पन्न अनेकान्त स्वरूप अपनी भगवान आत्मा को पहिचानना चाहिए।
प्रश्न २०१ - ज्ञानमात्र आत्मा अनेकान्त स्वरूप किस प्रकार से है ?
2
उत्तर – ज्ञानमात्र आत्मा को ज्ञान लक्षण के द्वारा अनुभव करने पर आत्मा मे मात्र ज्ञान ही नही आता है, परन्तु ज्ञान के साथ आनन्द, प्रभुता, वीर्य, दर्शन, चारित्र, अस्तित्वादिक अनन्त गुणो सहित अभेद आत्मा अनुभव मे आता है । इस प्रकार ज्ञानमात्र आत्मा कहते हो अनेकान्तपना आ जाता है ।
प्रश्न २०२ -- आत्मा मे अनन्त शक्तियाँ हैं, उनमे हेर-फेर होता है या नहीं होता है ?
उत्तर - आत्मा मे अनन्त शक्तियाँ एक साथ रहती हैं । शक्तियों मेहेरफेर नही होता है, परन्तु प्रत्येक शक्ति की पर्याये क्रम क्रम से नही होती हैं । जितनी शक्तियाँ है उतनी उतनी पर्याये एक-एक समय करके निरन्तर होती रहती हैं ।
प्रश्न २०३ - ज्ञान लक्षण द्वारा ध्यान मे क्या आता है और क्या नहीं आता है
?
उत्तर—ज्ञान लक्षण द्वारा अनन्त गुणो का पिण्ड ज्ञायक भगवान अनुभव मे आता है और नौ प्रकार का पक्ष अनुभव मे नही आता है ।