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________________ ( ५८ ) । प्रश्न १७५-इन १४ बोलो के अनेकान्त-स्यावाद स्वरूप को समझ ले तो क्या होता है ? उत्तर-(१) जो जीव भगवान के कहे हुए १४ वोल अनेकान्तस्याद्वाद के स्वरूप को समझ ले, तो वह जीव श्री समयसार मे आये हुए गा० ५० से ५५ तक वर्णादिक २६ वोलो से रहित अपने एकमात्र भूतार्थ स्वभाव का आश्रय लेकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रमश मोक्ष की प्राप्ति करता है (२) पचम पारिणामिक भाव का महत्व आ जाता है, और चार भावो की महिमा छुट जाती है। (३) चारोगति के अभावरूप पचमगति की प्राप्ति होती है। (४) मिथ्यात्व, अविरति, जमाद, कपाय और योग ससार के पाँच कारणो का अभाव हो जाता है। (५) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव ऐसे पॉच परावर्तनो का अभाव हो जाता है । (६) पचपरमेप्टियो मे उसकी गिनती होने लगती है। (७) १४वाँ गुणस्थान प्राप्त होकर, सिद्ध दशा की प्राप्ति होती है। (८) आठो कर्मों का अभाव हो जाता है। (६) सम्पूर्ण दुखो का अभाव होकर सम्पूर्ण सुखी हो जाता है । प्रश्न १७६-जो १४ बोल रूप अनेकान्त त्याद्वाद स्वरूप को न समझे, तो क्या होगा? उत्तर-(१) समयसार मे भगवान ने उसे 'पशु' कहा है। (२) आत्मावलोकन मे 'हरामजादीपना' कहा है। (३) प्रवचनसार मे "पद पद पर धोखा खाता है", (४) पुरुषार्थसिद्धयुपाय मे 'वह जिनवाणी सुनने के अयोग्य है' । (५) समयसार मे "वह ससार परिभ्रमण का कारण कहा है"। (६) समयसार कलश ५५ मे "यह अज्ञान मोह अज्ञान-अन्धकार है उसका सुलटना दुनिवार है" ऐसा बताया है। (७) अनेकान्त-स्याद्वाद को न समझने वाला मिथ्यादर्शनादि की पुष्टि करता हुआ चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद मे चला जाता है । प्रश्न १७७–अनेकान्त का क्या प्रयोजन है ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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