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( ४२ ) आत्मा से है) दोनो पहलू को जानकर सामान्य पहलू की ओर दृष्टि करने से जन्म-मरण का अभाव हो जाता है। ऐसा जानकर सम्यग्दर्शन आदि की प्राप्ति हुई, तो अस्ति-नास्ति का ज्ञान सच्चा है अन्यथा
झूठा है।
प्रश्न ६४-अस्ति-नास्ति का ज्ञान किसको है और किसको नहीं
है
उत्तर-चौथे गुणस्थान से सब ज्ञानियो को है। और निगोद से लगाकर द्रव्यलिंगी मुनि तक को अस्ति-नास्ति का ज्ञान नही है।
प्रश्न ६५-नित्य-अनित्य का रहस्य क्या है ?
उत्तर--(१) वस्तु जैसे स्वभावत स्वतः सिद्ध है, वैसे ही वह स्वभाव से परिणमन शील भी है। (२) स्वत स्वभाव के कारण उस मे नित्यपना है और परिणमन स्वभाव के कारण उसमे अनित्यपना है। (३) नित्य-अनित्यपना दोनो एक समय में ही होते हैं। (४) पात्र जीव अनित्य पर्याय को गौण करके नित्य स्वभाव की ओर दृष्टि कर के जन्म-मरण के दुख का अभाव करे। यह नित्य-अनित्य के जानने का रहस्य है।
प्रश्न १६-नित्य किसे कहते हैं ?
उत्तर-पर्याय पर दृष्टि ना देकर, जब द्रव्यदृष्टि से केवल अविनाशी त्रिकाली स्वभाव को देखा जाता है, तो वस्तु नित्य प्रतीत होती है।
प्रश्न ९७-नित्य स्वभाव की सिद्धि कैसे होती है ?
उत्तर-'यह वही है' इस प्रत्यभिज्ञान से इसकी सिद्धि होती है। जैसे-जो मारीच था वह ही शेर था, वह ही नन्दराजा था, और वह ही महावीर बना, "यह तो वही है" इससे नित्य स्वभाव का पता चलता है।
प्रश्न ९८-अनित्य किसे कहते हैं ? उत्तर-त्रिकाली स्वत सिद्ध स्वभाव पर दृष्टि ना देकर, जब