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ऐसा विकादेमी अभद विकल्प
( ३६ ) गुण-पर्यायो का भेद परद्रव्य है। (२) असख्यातप्रदेशी क्षेत्र मेरा स्वक्षेत्र है, इसको अपेक्षा प्रदेश भेद परक्षेत्र है। (३) कारण शुद्ध पर्याय मेरा स्वकाल है, इसकी अपेक्षा पर्याय का भेद परकाल है। (४) अभेद गुणो का पिण्ड स्वभाव है, इसकी अपेक्षा ज्ञान-दर्शन का भेद परभाव है। पात्र जीव को दूसरे प्रकार का भेद विज्ञान करने से अनन्त चतुष्ट्य की प्राप्ति का अवकाश है। प्रश्न ७६-तीसरे प्रकार का भेदविज्ञान क्या है ?
उत्तर-(१) अनन्त गुण पर्यायो का पिण्डरूप अभेद द्रव्य मैं हूँ ऐसा विकल्प परद्रव्य है, की अपेक्षा 'है सो है' वह स्वद्रव्य है। (२) असख्यात प्रदेशी अभेद क्षेत्र का विकल्प परक्षेत्र है, इसकी अपेक्षा 'जो क्षेत्र है सो है' जिसमे विकल्प का भी प्रवेश नही, वह स्वक्षेत्र है। (३) कारण शुद्ध पर्याय 'अभेद मै' यह विकल्प परकाल है, इसकी अपेक्षा 'जो है सो है' जिसमे विकल्प भी नही है वह स्वकाल है। (४) अभेद गुणो के पिण्ड का विकल्प परभाव है, इसकी अपेक्षा जिसमे गुणो का विकल्प भी नहीं है 'वह स्वभाव' है। पात्र जीवो को तीसरे प्रकार के भेद विज्ञान से अनन्तचतुष्टय की प्राप्ति नियम से होती है।
प्रश्न ८०-जैसा आपने तीन प्रकार का भेदविज्ञान बताया है ऐसा तो हमने हजारो बार किया है परन्तु हमे अनन्त चतुष्टय को प्राप्ति क्यो नहीं हुई ?
उत्तर-वास्तव मे इस जीव ने एक बार भी भेदविज्ञान नहीं किया है, क्योकि अनुभव होने पर भूत नैगमनय से तीन प्रकार का भेद-विज्ञान किया, तब उपचार नाम पाता है, क्योकि अनुपचार हुए विना उपचार नाम नही पाता है।
प्रश्न ८१-अस्ति-नास्ति अनेकान्त को वास्तव मे कब समझा कहा जा सकता है ?
उत्तर-अपने आत्मा का अनुभव होने पर अस्ति-नास्ति का अनेकान्त समझा कहा जा सकता है।