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( ३७ ) प्रश्न ७०-मैं अपने स्वभाव से हैं और पर से नहीं हूं "पर में" क्या-क्या आया ?
उत्तर-(१) अत्यन्त भिन्न पर पदार्थ, (२) आँख-नाक-कान आदि औदारिक शरीर, (३) तैजस कार्माणशरीर, (४) भापा और मन, (५) शुभाशुभ भाव , (६) अपूर्ण-पूर्ण शुद्ध पर्याय का पक्ष, (७) भेदनय का पक्ष, (८) अभेदनय का पक्ष, (६) भेदाभेद नय का पक्ष; यह सब पर मे आते है।
प्रश्न ७१-मैं अपने स्वभाव से हूँ और पर से नहीं हूँ-इसको जानने से क्या लाभ है ?
उत्तर- मैं अपने स्वभाव से हूँ और पर से नही हूँ। ऐसा निर्णय करते ही अनादिकाल से जो पर मे कर्ता-भोक्ता की बुद्धि थी, उसका अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति हो जाती है और स्याद्वाद अनेकान्त का मर्मी बन जाता है।
प्रश्न ७२-अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति किसको है और अनन्त चतुष्टय क्या है ?
उत्तर-अनन्त चतुष्ट्य की प्राप्ति अहंत भगवान को हुई है और अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य यह चार अनन्तचतुष्ट्य कहलाते हैं।
प्रश्न ७३-भगवान को अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति कैसे हुई ?
उत्तर-भगवान ने अपने स्वचतुष्ट्य की ओर दृष्टि दी, तो उनको अनन्तचतुष्ट्य की प्राप्ति हुई।
प्रश्न ७४--भगवान ने कैसे स्वचतुष्टय की ओर दृष्टि दो तो उनको अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति हुई ?
उत्तर-"(१) स्वद्रव्य=निविकल्प 'मात्र वस्तु । परद्रव्य = सविकल्प भेद करना । (२) स्वक्षेत्र=आधारमात्र वस्तु का प्रदेश । परक्षेत्र जो वस्तु का आधारभूत प्रदेश निर्विकल्प वस्तु मात्र रूप से कहा था वही प्रदेश सविकल्प भेद कल्पना से परप्रदेश बुद्धि गोचर रूप