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होता है । इन सब वाक्यों में अनेकान्त को कब माना और कब नहीं माना, स्पष्ट खुलासा करो ?
उत्तर- ( १ ) ज्ञान गुण से ज्ञान होता है और शास्त्र से नही होता है तो अनेकान्त को माना । (२) ज्ञान गुण से भी ज्ञान होता है और शास्त्र से भी होता है तो अनेकान्त को नही माना । इसी प्रकार वाकी नौ प्रश्नो के उत्तर दो ।
प्रश्न ६७ - सच्चे अनेकान्त के जानने वाले को कैसे-कैसे प्रश्न उपस्थित नहीं होते हैं ?
उत्तर - ( १ ) में किसी का भला बुरा कर दूं । (२) मेरा कोई भला-बुरा कर दे, (३) शरीर की क्रिया से धर्म होगा, (४) शुभभाव से धर्म होगा या शुभभाव करते-करते धर्म होगा, (५) निमित्त से उपादान मे कार्य होता है, (६) एक गुण का कार्य दूसरे गुण से होता है, (७) एक पर्याय दूसरो पर्याय मे कुछ करे, आदि प्रश्न सच्चे अनेकान्ती को नही उठते हैं; क्योकि वह जानता है कि एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नही है। एक गुण का दूसरे गुण से तथा एक पर्याय का दूसरी पर्याय से कुछ सम्बन्ध नही है, इसलिए सच्चे अनेकान्ती को ऐसे प्रश्न नही उठते हैं ।
प्रश्न ६८ - मिथ्यादृष्टि को कैसे-कैसे प्रश्न उठते हैं ?
उत्तर - ( १ ) में दूसरो का भला बुरा या दूसरे मेरा भला-बुरा कर सकते हैं; (२) शरीर मेरा है, (३) शरीर का कार्य मैं कर सकता हूँ, (४) निमित्त से उपादान मे कार्य होता है, (५) शुभभावो से धर्म होता है आदि खोटे प्रश्न उपस्थित होते हैं, क्योकि वह स्याद्वादअनेकान्त का रहस्य नही जानता है ।
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प्रश्न ६६ - स्व से अस्ति और पर से नास्ति क्या बताता है उत्तर - मैं अपने स्वभाव से हूँ और पर से नही हूँ ऐसा अनेकान्त
बताता है ।