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॥ श्री वीतरागायनम ।।
जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला
चौथा भाग
मगलाचरण
णमो अरहन्ताण, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाण; णमो उवझायाण, णमो लोए सव्व साण ॥१॥
आत्मा सो अर्हन्त है, निश्चय सिद्ध जु सोहि । आचारज उवझाय अरु, निश्चय साधु सोहि ॥२॥
स्याद्वाद अधिकार अब, कहाँ जैन को मूल । जाकें जानत जगत जन, लहैं जगत-जल-फूल ।।३।।
देव गुरु दोनो खड़े किसके लागू पांव । बलिहारी गुरुदेव की भगवान दियो बताय ॥४॥ करुणानिधि गुरुदेव श्री दिया सत्य उपदेश। ज्ञानी माने परख कर, करे मूढ सक्लेश ॥५॥