________________ ( 246 ) अब पाच दोपो का त्याग कहते हैं (अतीचार)। (21) 1 सर्वज्ञ वचन को नि सदेहपणे माने / (22) 2 मिथ्यामत की अभिलाषा न करे, पर-द्वत को न इच्छे। (23) 3 पवित्र स्वरूप को ग्रहे, पर ऊपर ग्लानि न करे / (24) 4 मिथ्यात्वी परग्राही द्वैत की मन द्वारा प्रशसा न करे। उसी प्रकार (25) 5 वचन द्वारा (उस मिथ्यात्वी के) गुण न कहे। अब सम्यक्त्व की प्रभावना के आठ भेद कहते है - (26) 1. पवरणी-(अर्थात् सिद्धान्त का जानकर) सिद्धान्त में स्वरूप को उपादेय कहे। (27) 2. धर्मकथा-जिनधर्म का कथन कहे। (28) 3. वादी-हट द्वारा हत का आग्रह होय तो छुडावे और मिथ्यावाद मिटावे। (26) 4. निमित्त-स्वरूप पाने मे निमित्त जिनवाणी, गुरु तथा स्वधर्मी है और निजविचार है, निमित्त रूप से जो धर्मज्ञ है उसका हित कहे। (30) 5. तपस्वी-परद्वैत की इच्छा मिटाकर निज प्रताप प्रगट करे। (31) 6. विद्यावान्-विद्या द्वारा जिनमत का प्रभाव कहे, ज्ञान द्वारा स्वरूप का प्रभाव करे। (32) 7. सिद्ध-स्वरूपानन्दी का वचनद्वारा हित करे, सघ की स्थिरता करे, जिस द्वारा स्वरूप की प्राप्ति होती है उसको सिद्ध कहते (33) 8. कवि-कवि स्वरूप सम्बन्धी रचना रचे, परमार्थ को पावे, प्रभावना करे / इस आठ भेदो द्वारा जिनधर्म का-स्वरूप काप्रभाव बढे, ऐसा करे ये अनुभवी के लक्षण है /