________________ (239 ) की पर्याय का सहचर करके निरूपण किया है क्योकि उन्होने सात तत्त्वो के ज्ञान कराने के उद्देश्य से ग्रन्थ लिखा है। शेप सब ग्रन्थो के लक्षण उपर्युक्त सव लक्षणो के पेट मे ही आ जाते हैं तथा उपर्युक्त के समझ लेने से पाठक अन्य पुस्तको के लक्षणो को स्वय समझ जाता निश्चय व्यवहार सम्यग्दर्शन यह विपय समझना परमावश्यक है और हम उस पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयत्न करते हैं। यह विषय वास्तविक रूप मे उसी को समझ आयेगा जिसको द्रव्य गुण पर्याय का अच्छा ज्ञान होगा। इस विषय मे जितनी भी भूल जगत् मे चलती है वह सब द्रव्य गुण पर्याय की अज्ञानता के कारण चलती है / अस्तु (1) आत्मा मे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य इत्यादि अनन्त गुणो की तरह एक सम्यक्त्व नाम गुण है। इसको श्रद्धा गुण भी कहते हैं। इसकी केवल छ पर्यायें होती हैं (1) मिथ्यात्व (2) सासादन (3) मिश्र अर्थात् सम्यक् मिथ्यात्व (4) औपशमिक सम्यग्दर्शन (5) क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन (6) क्षायिक सम्यग्दर्शन / सातवी कोई पर्याय इस गुण मे नही होती। व्यवहार सम्यग्दशन, निश्चयसम्यग्दर्शन नाम का कोई पर्याय भेद इस गुण मे है ही नहीं / यह सिद्धान्त पद्धति है / केवल ज्ञान के आधार पर इसका निरूपण होता है / इस पद्धति मे एक गुण की पर्याय का आरोप दूसरे गुण पर नहीं होता किन्तु प्रत्येक गुण का भिन्न-भिन्न विचार किया जाता है। इस पद्धति मे क्षायिक सम्यग्दर्शन को वीतराग सम्यग्दर्शन भी कहते हैं और औपशमिक तथा क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन को सराग सम्यग्दर्शन भी कहते हैं। इस प्रकार सराग और वीतराग सम्यग्दर्शन दोनो श्रद्धा गुण को वास्तविक पर्याय बन जाती हैं। यह पद्धति श्रीराजवातिक जी मे है तथा श्री अमितगतिश्रावकाचार मे यह . श्लोक है :