________________ तीन लोक के अज्ञानचेतनाका दो प्रकार कान ( 231 ) प्रश्न २१३-द्रव्यदृष्टि से जीव तत्त्व का निरूपण करो? उत्तर-ऊपर प्रश्न न. 197 के उत्तर में कह चुके हैं। (798, 766, 800) / प्रश्न २१४-पर्यायदृष्टि से जीव तत्त्व का निरूपण करो? उत्तर-जीव चेतना रूप है। वह चेतना दो प्रकार को है एक ज्ञानचेतना, दूसरी अज्ञान चेता। अत उनके स्वामी भी दो प्रकार के हैं। ज्ञानचेतना का स्वामी सम्यग्दृष्टि / अज्ञानचेतना का स्वामी मिथ्यादृष्टि, पर्यायदृष्टि से तीन लोक के जीव इन्ही के दो रूप है। (658 से 1005) प्रश्न २१५-सम्यग्दृष्टि का स्वरूप बताओ? उत्तर-(१) जो ज्ञान चेतना का स्वामी हो (2) ऐन्द्रिय सुख तथा ऐन्द्रिय ज्ञान मे जिसकी हेय बुद्धि हो (3) अतीन्द्रिय सुख तथा अतोन्द्रियज्ञान मे जिसकी उपादेय बुद्धि हो (4) जिसे अपनी आत्मा का प्रत्यक्ष हो गया हो (5) वस्तु स्वरूप को विशेषतया नी तत्त्वो को और उनमे अन्वय रूप से पाये जाने वाले सामान्य का जानने वाला हो (6) भेदविज्ञान को प्राप्त हो (7) किसी कर्म मे खास कर सातावेदनीय मे तथा कर्मों के कार्य मे जिसकी उपादेय बुद्धि न हो (8) जिसके वीर्य का झुकाव हर समय अपनी ओर हो (8) पर के प्रति अत्यन्त उपेक्षारूप वैराग्य हो (10) कर्म चेतना और कर्मफल चेतना का ज्ञाता द्रष्टा हो (11) सामान्य का सवेदन करने वाला हो (12) विषय सुख मे और पर मे अत्यन्त अरुचि भाव हो (13) केवल (मात्र) ज्ञानमय भावो को उत्पन्न करने वाला हो। ये मोटे-मोटे लक्षण हैं / वास्तव मे तो 'एक झान चेतना' ही सम्यग्दृष्टि का लक्षण है। उसके पेट मे यह सब कुछ आ जाता है / हमने अपने परिणामो से मिला कर लिखा है। सन्त जन अपने परिणामो से मिला कर देखे (666, 1000, 1136, 1142) / प्रश्न २१६-मिथ्यादृष्टि का स्वरूप क्या है ?