________________ ( 230 ) उत्तर-अपने गुण से च्युत होना अशुद्धत्व है अर्थात विभाव के कारण अद्वैत से ढंत हो जाना अशुद्धत्व है। जैसे ज्ञान का अज्ञान रूप होना। (880, 868) प्रश्न २१०-बद्धत्व और अशुद्धत्व में क्या अन्तर है ? उत्तर-एक अन्तर तो यह है कि बन्ध कारण है और अशुद्धत्व कार्य है क्योकि बन्ध के विना अशुद्धता नही होती अर्थात् विभाव परिणमन किये बिना ज्ञान की अज्ञानरूप दशा नही होती। ज्ञान का विभाव परिणमन बद्धत्व है और उसकी अज्ञान दशा अशुद्धत्व है। समय दोनो का एक ही है। यहा वद्धत्व कारण है और अशुद्धत्व कार्य (869) दूसरा अन्तर यह है कि वध कार्य है क्योकि बन्ध अर्थात विभाव पूर्वबद्धकर्मों के उदय से होता है और अशुद्धत्व कारण है क्योकि वह नए कर्मों को खेचती है अर्थात् उनके बधने के लिए निमितमात्र कारण हो जाती है। (600) पहले अन्तर मे वध कारण है दूसरे मे बध कार्य है। पहले अन्तर / मे मशुद्धत्व कार्य है दूसरे मे कारण है यही बद्धत्व और अशुद्ध दोनो में अन्तर है। प्रश्न २११-शुद्ध अशुद्ध का क्या भाव है ? उत्तर-औदयिक भाव अशुद्ध है, क्षायिक भाव शुद्ध है। यह पर्याय भे शुद्ध अशुद्ध का अर्थ है / दूसरा अर्थ यह है कि औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक चारो नैमित्तिक भाव अशुद्ध है और उनमें अन्वय रूप से पाये जाने वाला सामान्य शुद्ध है। (901) प्रश्न २१२-निश्चय नय का विषय क्या है तया बद्धाबद्धनय (व्यवहार नय) का विषय क्या है ? उत्तर-निश्चय नय का विपय उपर्युक्त शुद्ध सामान्य है तथा व्मवहार नय का विषय जीव की नौ पर्याये अर्थात अशुद्ध नौतत्त्व है। (603) (897)