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मोक्षमार्ग नही है-ऐसा ही श्रद्धान करना । इस प्रकार व्यवहारनय अगीकार करने योग्य नहीं है, ऐसा जानना।
प्रश्न ३१-जो जीव व्यवहारनय के कथन को ही सच्चा मान लेता है उसे जिनवाणी में किन-किन नामो से सम्बोधन किया है ?
उत्तर-(१) पुरुषार्थ सिद्धयुपाय गाथा ६ मे कहा है कि "तस्य देशना नास्ति"। (२) समयसार कलश ५५ मे कहा है कि "अज्ञानमोह अन्धकार है उसका सुलटना दुर्निवार है"। (३) प्रवचनसार गाथा ५५ मे कहा है कि "वह पद-पद पर धोखा खाता है"। (४) आत्मावलोकन मे कहा है कि "यह उसका हरामजादीपना है"। इत्यादि सब शास्त्रो मे मूर्ख आदि नामो से सम्बोधन किया है।
प्रश्न ३२-परमागम के अमूल्य ११ सिद्धान्त क्या-क्या है, जो मोक्षार्थी को सदा स्मरण रखना चाहिए और वे जिनवाणी मे कहांकहाँ बतलाये हैं ?
उत्तर-(१) एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को स्पर्श नही करता है। [समयसार गाथा ३] (२) प्रत्येक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय क्रमबद्ध ही होती है। [समयसार गाथा ३०८ से ३११ तक] (३) उत्पाद, उत्पाद से है व्यय या ध्र व से नहीं है। [प्रवचनसार गाथा १०१] (४) प्रत्येक पर्याय अपने जन्मक्षण मे ही होती है। [प्रवचनसार गाथा १०२] (५) उत्पाद अपने षटकारक के परिणमन से ही होता है [पचास्तिकाय गाथा ६२] (६) पर्याय और ध्रव के प्रदेश भिन्न-भिन्न हैं [समयसार गाथा १८१ से १८३ तक] (७) भाव शक्ति के कारण पर्याय होती ही है, करनी पडती नहीं। [समयसार ३३वी शक्ति] (८) निज भूतार्थ स्वभाव के आश्रय से ही सम्यग्दर्शन होता है। [समयसार गाथा ११] (8) चारो अनुयोगो का तात्पर्य मात्र वीतरागता है। [पंचास्तिकाय गाथा १७२] (१०) स्वद्रव्य मे भी द्रव्य गुण-पर्याय का भेद विचारना वह अन्यवशपणा है। [नियमसार