________________ (213 ) दूसरा ही है। उसकी तो बात ही क्या। विभाव क्षणिक है। निकल जाता है / वह कोई मूल वस्तु ही नहीं। अत उसकी भी क्या बात / अव द्रव्य मे केवल पूर्ण स्वभाव पर्याय और गुण बचता है क्योकि एक देश स्वभाव पर्याय भी साथ मे विभाव के अस्तित्व के कारण थी। जब विभाव निकल गया तो एक देश स्वभाव पर्याय को कोई अवकाश नही रहा। पूर्ण शुद्ध पर्याय द्रव्य का सोलह आने निरपेक्ष स्वत सिद्ध गुण परिणमन है / गुणो का स्वभाव ही नित्यानित्यात्मक है / जब तक पर्याय मे विभाव था तब तक गुण और पर्याय का स्वभाव भेद दिखलाना प्रयोजनवान था। अब पर्याय को गुण से भिन्न कहने का कोई प्रयोजन न रहा / वह गुण मे समाविष्ट हो जायेगी। जिन आचार्यों ने केवल गुण समुदाय द्रव्य कहा है वह इसी दृष्टि को मुख्यता से कहा है। अब उस द्रव्य को न असद्भूत नय से कुछ प्रयोजन रहा, और पर्याय भिन्न न रहने से उपचरित सद्भूत से भी प्रयोजन न रहा / अनुपचरित सद्भूत तो उपचरित के मुकाबले मे था। जब उपचरित न रहा तो अनुपचरित भी व्यर्थ हो गया। उसके लिए आचार्यों ने कहा कि अब द्रव्य को भेद करने का और तरीका है और इन नयो की अव आवश्यकता नही / अब तो और ही प्रकार से भेद होगा, वह प्रकार है गुण भेद / जितने गुणो का वह अखण्ड पिण्ड है बस केवल उतने ही भेद होगे और कोई भेद न होगा और न हो सकता है। एक-एक गुण को बतलाने वाली एक-एक नय / जो गुण का नाम, वही नय का नाम जैसे ज्ञान गुण को बतलाने वाली ज्ञान नय / जहाँ तक गुण गुणो का भेद है वहाँ तक व्यवहार नय है / वे सब व्यवहार नय का विस्तार है, परिवार है / ये सब काल्पनिक भेद केवल समझाने की दृष्टि से किया गया है / जो अभेद मे भेद करे वह सब व्यवहार है। ___अब निश्चय नय को समझाते हैं। निश्चय नय का विषय परवस्तु रहित, विभाव रहित, एकदेश स्वभाव पर्याय रहित, पूर्ण स्वभाव पर्याय को गुणो मे समाविष्ट करके, गुण भेद को द्रव्य मे समाविष्ट करके सात हैं। निश्का रहित, पूर्ण माविष्ट