________________ ( 200 ) उत्तर- वस्तु स्वभाव से ही काल-कालाश रूप बनी हुई है। प्रदेश वही है स्वरूप वही है। काल से देखना सामान्य दृष्टि, कालाश दृष्टि से देखना विशेष दृष्टि / जिस दृष्टि से देखना वह काल से अस्ति और जिससे नहीं देखना वह काल से नास्ति। जो वस्तु सामान्य परिणमन रूप है वही तो विशेष परिणमन रूप है जैसे आत्मा मे पर्याय यह सामान्य काल, मनुष्य पर्याय यह विशेष काल / (274 से 277 तक, 756, 757) प्रश्न ७६-भाव से अस्तिनास्ति बताओ? उत्तर-वस्तु स्वभाव से ही भाव भावाश रूप बनी हुई है। प्रदेश वही है स्वरूप वही है। भाव की दृष्टि से देखना सामान्य दृष्टिभावाश की दृष्टि से देखना विशेष दृष्टि। जिस दृष्टि से देखो वह भाव से अस्ति-दुसरी नास्ति / जो वस्तु भाव सामान्य रूप है वही तो भाव विशेप (ज्ञान गुण) रूप है। (276 से 282 तक) प्रश्न ८०-उपर्युक्त चारो का सार क्या है ? उत्तर-वस्तु सत् सामान्य की दृष्टि से, द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से हर प्रकार निरश है और वही वस्तु द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा अशो में विभाजित हो जाती है अत साश है। वस्तु दोनो रूप है। वह सारी की सारी जिस रूप देखनी हो उसको मुख्य या अस्ति कहते हैं। दूसरी को गौण या नास्ति कहते है। (284 से 286) प्रश्न ८१-अस्ति नास्ति का उभय भंग बताओ? उत्तर-जो स्व (सामान्य या विशेष जिसकी विवक्षा हो) से अस्ति है, वही पर (सामान्य या विशेप जिसकी विवक्षा न हो) से नास्ति है, तथा वही अनिर्वचनीय है / यह उभय भग या प्रमाण दृष्टि है। . (286 से 308 तक तथा 759) / प्रश्न ८२-अस्ति नास्ति का अनुभय भंग बताओ? उत्तर- वस्तु किस रूप से है और किस रूप से नहीं है, यह भेद ही जहाँ नही है किन्तु वस्तु की अनिवर्चनीय-अवक्तव्य निर्विकल्प (अखण्ड)