________________ ( 186 ) कही सामान्य के प्रदेश भिन्न और विशेष के प्रदेश भिन्न है क्या ? नही / इस दृष्टि मे आकर वस्तु केवल अनुभव का विषय रह जाती है। शब्द मे आप कह ही नही सकते क्योकि शब्द मे तो विशेषण विशेष्य रूप से ही बोलने का नियम है। बिना इस नियम के कोई शब्द कहा ही नही जा सकता / जो आप कहेगे वह विशेषण विशेष्य रूप पडेगा। इसलिये आप को अनुभव मे तो बराबर आने लगा कि वस्तु न सामान्य रूप है न विशेष रूप है, वह तो अखण्ड है। जो है सो है। अनुभय शब्द का अर्थ है-दोनो रूप नही / इसलिये इस का नाम रखा अनुभय दृष्टि। दोनो रूप नही का भाव यह नहीं है कि कुछ भी नही किन्तु यह है कि दोनो रूप अर्थात् भेद रूप नही किन्तु अखण्ड है। भेद के निपेव मे अखण्डता का समर्थन निहित (छुपा हुआ) है। (क) क्योकि इसको विशेषण विशेष्य रूप से शब्द मे नही बोल सकते इसलिये इसका नाम रक्खा अनिर्वचनीय दृष्टि या अवक्तव्य दृष्टि / (ख) क्योकि वस्तु मे किसी प्रकार भेद नहीं हो सकता / भेद को व्यवहार कहते है, अभेद को निश्चय कहते हैं। इसलिये इस दृष्टि का नाम रक्खा निश्चय दृष्टि / (ग) क्योकि ये भेद का निषेध करती है इसलिये इसका नाम हुआ भेद निषेधक दृष्टि या व्यवहार निपेधक दृष्टि / (घ) शब्द मे जो कुछ आप बोलेगे उसमे वस्तु के एक अग का निरूपण होगा, सारी का नही। 'देखिये आपने कहा 'द्रव्य' ये तो द्रव्यत्व गुण का द्योतक है, वस्तु तो अनन्त गुणो का पिण्ड है। फिर आपने कहा 'वस्तु'। वस्तु तो वस्तुत्व गुण की द्योतक है पर वस्तु मे तो अनन्त गुण हैं / फिर आपने कहा 'सत्' या 'सत्त्व' ये अस्तित्व गुण के द्योतक हैं। फिर आपने कहा 'अन्वय' ये त्रिकाली स्वभाव का द्योतक है, पर्याय रह जाती है / आप