________________ ( 140 ) होती है। उसी प्रकार ज्ञानियो की दृष्टि चाहे वह ससार के कार्यों मे दीखे और कही युद्ध मे दीखे, उनकी दृष्टि एकमात्र अपने स्वभाव पर ही होती है। प्रश्न २१८-हमारा कल्याण कैसे हो ? उत्तर-जो अनादिअनन्त त्रिकाली स्वभाव है उसकी दृष्टि करे तो धर्म की शुरुआत होकर क्रम से वृद्धि होकर सिद्ध परमात्मा बन जावेगा। प्रश्न २१६-शुद्धोपयोग किसे कहा है ? उत्तर-"शुद्धात्माभिमुख परिणाम" को शुद्धोपयोग कहा है। प्रश्न २२०-आगम भाषा मे शुद्धोपयोग किसे कहा जाता है ? उत्तर-औपशमिकभाव, धर्म का क्षायोपशमिकभाव और क्षायिक भाव, इन-इन भावो को शुद्धोपयोग कहा है। प्रश्न २२१-पांच भावो का स्वरूप पंचास्तिकाय में क्या बताया उत्तर-पचास्तिकाय गा० 56 मे बताया गया है कि "कर्मों का फल दान सामथ्यरूप से उदभव सो "उदय" है, अनुदभव सो 'उपशम' है, उदभव तथा अनुदभव सो 'क्षयोपशम' है अत्यन्त विश्लेष (वियोग) सो क्षय है। द्रव्य का आत्मलाभ (अस्तित्व) जिसका हेतु है वह "परिणाम" है। वहाँ उदय से युक्त वह "औदयिक" है, उपशम से युक्त वह 'औपशमिक' है, क्षयोपशम से युक्त वह 'क्षायोपशमिक' है, क्षय से युक्त वह 'क्षायिक' है, परिणाम से युक्त वह “पारिणामिक" है। कर्मोपाधिकी चार प्रकार की दशा (उदय, उपशम, क्षयोपशम और क्षय) जिनका निमित्त है ऐसे चार भाव हैं जिसमे कर्मोपाधिरूप निमित्त विल्कुल नही है मात्र द्रव्य स्वभाव ही जिनका कारण है ऐसा एक पारिणामिक भाव है। जिन, जिनवर और जिनवर वृषभों के द्वारा पांच असाधारण भावों 'का वर्णन पूरा हुआ।