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( ११६ ) और क्षायोपशमिक भाव मे जो अज्ञानभाव है वह मिथ्यादर्शन के कारण दूपित होता है। [मोक्षशास्त्र हिन्दी प० फूलचन्द जी सपादित पृष्ठ ३१ का फुटनोट]
प्रश्न ४६-पारिणामिक भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर-(१) कर्मों का उपशम, क्षय, क्षयोपशम, अथवा उदय की अपेक्षा रखे बिना जीव का जो स्वभाव मात्र हो उसे पारिणामिक भाव कहते हैं। (२) जिनका निरन्तर सदभाव रहे उसे पारिणामिक भाव कहते हैं। सर्वभेद जिसमे गभित हैं ऐसा चैतन्य भाव ही जीव का पारिणामिक भाव है। [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ १९४]
प्रश्न ४७-पाँच भावो का कोई द्रष्टान्त देकर समझाइये।
उत्तर--(१) जैसे- एक कांच के गिलास मे पानी और मिट्टी । एकमेक दिखती है; उसी प्रकार जीव के जिस भाव के साथ कर्म के उदय का सम्बन्ध है वह औदयिकभाव है। (२) पानी कीचड सहित गिलास मे कतकफल डालने से कीचड नीचे बैठ गया निर्मल पानी ऊपर आ गया, उसी प्रकार कर्म के उपशम के साथ वाला जीव के भाव को औपशमिक भाव कहते हैं। (३) कीचड बैठे हुए पानी के गिलास मे ककड डाली तो कोई-कोई मैल ऊपर आ गया; उसी प्रकार कर्म के क्षयोपशम के साथ वाला जीव का भाव क्षामोपशमिक भाव है। (४) कीचड अलग पानी अलग किया, उसी प्रकार कर्म के क्षय के सम्बन्ध वाला भाव क्षायिक भाव है। (५) जिसमे कीचड आदि किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नही है, उसी प्रकार जिसमे कर्म के उदय, क्षय, क्षयोपशम और उपशम की कोई भी अपेक्षा नही है ऐसा अनादिअनन्त एकरूप भाव वह पारिणामिक भाव है।
प्रश्न ४८-पारिणामिक भाव के कितने भेद हैं ? उत्तर-(१) जीवत्व (२) भव्यत्व (३) अभव्यत्व । प्रश्न ४६-जीवत्व भाव के पर्यायवाची शब्द क्या-क्या है ?