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( १०३ ) योग्य नही, अब सर्व प्रकार से अवसर आया है, ऐसा अवसर पाना कठिन है। इसलिए वर्तमान मे श्रीसत्गुरु दयालु होकर मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं । भव्य जीवो को उनमे प्रवृत्ति करनी चाहिए। [मोक्षमार्ग प्रकाशक]
प्रश्न १५३--सम्यग्दर्शन का लक्षण पं० टोडरमल जी ने किसे कहा है और सम्यग्दर्शन क्या है ?
उत्तर-विपरीताभिनिवेश रहित जीवादिक तत्वार्थ श्रद्धान वह सम्यग्दर्शन का लक्षण है और सम्यग्दर्शन आत्मा के श्रद्धा गुण की स्वभाव अर्थ पर्याय है।
प्रश्न १५४-सम्यग्दर्शन सविकल्प है या निर्विकल्प है ?
उत्तर- सम्यग्दर्शन निर्विकल्प शुद्ध भावरूप परिणमन हैं और किसी भी प्रकार से सम्यग्दर्शन सविकल्प नहीं है। यह चौथे गुणस्थान से सिद्धदशा तक एकरूप है।
प्रश्न १५५-५० टोडरमल जी ने चौथे गुणस्थान से सिद्धवशE तक सम्यग्दर्शन एक समान है, इस विषय में क्या कहा है ?
उत्तर-ज्ञानादिक की हीनता-अधिकता होने पर भी तियं चादिक व केवली सिद्ध भगवान के सम्यक्त्व गुण समान ही कहा है" । तथा चिट्ठी मे लिखा है कि "चौथे गुणस्थान मे सिद्ध समान क्षायिक सम्यक्त्व हो जाता है। इसलिए सम्यक्त्व तो यथार्थ श्रद्धान रूप ही है"। "निश्चयसम्यक्त्व प्रत्यक्ष है और व्यवहार सम्यक्त्व परोक्ष है" ऐसा नहीं है। इसलिए सम्यक्त्व के प्रत्यक्ष-परोक्ष भेद नही मानना।
प्रश्न १५६-क्या निश्चय और व्यवहार-ऐसे दो प्रकार के सम्यग्दर्शन हैं ?
उत्तर-बिल्कुल नही, सम्यग्दर्शन एक ही प्रकार का है, दो प्रकार का नही है किन्तु उसका कथन दो प्रकार से है।
प्रश्न १५७-चारो अनुयोगो मे प्रथम सम्यग्दर्शन का उपदेश क्यों. किया?