________________
T
1
I
( ६६ )
(२) लौकिक ज्ञान की प्राप्ति मे भी वर्तमान पुरुषार्थ किंचित् मात्र
कार्यकारी नही है ।
प्रश्न १३७ - हमने पैसा कमाने का भाव किया, तभी तो पैसों की प्राप्ति हुई ना ?
उत्तर - अरे भाई बिल्कुल नही, पापभाव है । पाप करे और पैसा मिले,
है ।
क्योकि पैसा कमाने का भाव ऐसा कभी भी नही हो सकता
प्रश्न १३८ - आजकल जमाने में झूठ ना बोले, चोरी ना करे तो भूखे मर जावे ?
उत्तर - बिल्कुल नही, क्योकि झूठ और चोरी कारण हो और पैसा मिले यह कार्य, ऐसा कभी नही हो सकता है ।
प्रश्न १३६ - झूठ बोलकर चोरी करने से पैसा देखने में तो आता
है ?
उत्तर - पहिले जन्म मे कोई शुभभाव या अशुभभाव किया तो उसके निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध की अपेक्षा साता - असाता का सयोग देखने मे आता है । उसमे ( रुपया पैसा कमाने मे) जीव का पुरुषार्थ किंचित् मात्र भी कार्यकारी नही है ।
प्रश्न १४० -- क्या लौकिक ज्ञान की प्राप्ति मे भी वर्तनान पुरुषार्थं किचित् मात्र कार्यकारी नहीं है ?
उत्तर - विल्कुल नही है, क्योकि विचारो मेढक चीस तो ज्ञान वढा, क्या यह ठीक है ? आप कहेगे ऐसा ही देखते हैं। तो भाई एक मेढक चीरने से ज्ञान वढता हो, तो सौ मेढक चीरने से ज्यादा ज्ञान बढना चाहिये, सो ऐसा होता नही है ।
-
प्रश्न १४१ - किसी के कम ज्ञान किसी को ज्यादा ज्ञान ऐसा देखने मे आता है ?
उत्तर -- पूर्व भव मे ज्ञान के विकास सम्वन्धी मन्द कपाय 11