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प्रश्न १२७ - कोई कहे काललन्धि पकेगी तभी धर्म होगा क्या यह मान्यता बराबर है।
?
उत्तर - यह मान्यता खोटी है, क्योकि ऐसी मान्यता वाले ने पाँच समवायो को एक साथ नही माना, मात्र एक काललब्धि को ही माना इसलिए वह एकान्त कालवादी गृहीत मिथ्यादृष्टि है ।
प्रश्न १२८ - जगत में सब भवितव्य के आधीन हैं जब धर्म होना होगा तब होगा, क्या यह मान्यता बराबर है ?
उत्तर - बिल्कुल नही, क्योकि इस मान्यता वाले ने पाँचो समवायों को एक साथ नही माना, मात्र एक भवितव्य को ही माना इसलिए वह एकान्त नियतिवादी गृहीत मिथ्यादृष्टि है ।
प्रश्न १२६ - कोई अकेले मात्र द्रव्यकर्म को ही माने तो क्या ठीक
है
उत्तर - यह भी मिथ्या है, क्योकि इस मान्यता वाले ने पांच समवायो को एक साथ नही माना, मात्र एक द्रव्यकर्म के उपशमादिक को ही माना इसलिए वह एकान्त कर्मवादी गृहीत मिथ्यादृष्टि है । प्रश्न १३० - कोई मात्र स्वभाव को ही माने क्या ठीक है ? उत्तर - बिल्कुल नही, क्योकि इस मान्यता वाले ने पाँचो समवायो को एक साथ नही माना मात्र स्वभाव को ही माना इसलिए यह स्वभाववादी गृहीत मिथ्यादृष्टि है और वेदान्त की मान्यता वाला है ।
प्रश्न १३१ - कोई मात्र पुरुषार्थ ही चिल्लाये और बाकी स्वभाव आदि को न माने तो क्या ठीक है ?
उत्तर -- बिल्कुल गलत है, इस मान्यता वाले ने भी पाँच समवायो को एक साथ नही माना, मात्र पुरुषार्थ को ही माना इसलिए यह बीद्ध मतावलम्वी गृहीत मिथ्यादृष्टि है ।
प्रश्न १३२ - पांचो समवायो में द्रव्य-गुण-पर्याय कौन-कौन हैं उत्तर - सामान्य ज्ञायक स्वभाव वह द्रव्य है । और शेष चार पर्यायें हैं ।