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( ६७ ) उत्तर-पहले गुणस्थान में जिज्ञासु जीवों को शास्त्राभ्यास,
अध्ययन- मनन, ज्ञानी पुरुषों का धर्मोपदेश-श्रवण, निरन्तर उनका समागम, देवदर्शन, पूजा, भक्ति, दान आदि शुभभाव होते हैं किन्तु सच्चे व्रत तप आदि नहीं होते हैं क्योंकि सच्चे व्रतादि तो सम्यग्दर्शन के बाद पांचवें
गुणस्थान में शुभभाव रुप से होते है। प्रश्न (७८)-व्रत, दान, अणुव्रतादि से धर्म नही होता है ऐसा
कथन सुनने या पढ़ने से लोगों को अत्यन्त हानि होना सम्भव है। इस समय लोग कुछ व्रत, प्रत्याख्यानादिक क्रियाएं करते है उन्हें छोड़ देगें, क्या उनका कहना
ठीक है ? उत्तर-(१) बिल्कुल गलत है क्योंकि सत्य से कभी भी क्या किसी जीव को हानि हो सकती है ? आप कहेगें, कभी नहीं। इसलिए सत् का श्रवण या अध्ययन करने से जीवों को कभी हानि नहीं हो सकती है।
(२) व्रत करने वाले ज्ञानी हैं या अज्ञानी यह जानना आवश्यक है। यदि अज्ञानी हैं तो उन्हें सच्चे व्रतादि होते ही नहीं इसलिए उन्हे छोड़ने का प्रश्न उपस्थित ही नहीं होता है। यदि व्रत करने वाले ज्ञानी हैं तो वह व्रत छोड़कर अशुभ में जावेंगे यह बात असम्भव है, परन्तु ऐसा होता है कि ज्ञानी शुभभावों को क्रमश: दूरकर शुद्धभाव की वृद्धि करें वह लाभ का कारण है, हानि का नहीं। इसलिए सत्य कथन से किसी को भी हानि हो ही नहीं
सकती है। प्रश्न (७६)-मैं अनन्त गुणों का अभद ज्ञायक पिण्ड भगवान