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प्रश्न (१२०)-संसार परिभ्रमण का प्रभाव कैसे हो ? उत्तर-विश्व के किसी भी पदार्थ से मेरा सम्बंध नहीं है ऐसा
जानकर नित्यतादात्मय सम्बंध ऐसे अपने अभेद आत्मा का पाश्रय ले तो संसार परिभ्रमण का प्रभाव होकर धर्म की प्राप्ति होती है। अपने भूतार्थ स्वभाव के आश्रय के बिना संसार का प्रभाव नहीं हो सकता। इसलिए पात्र जीव को अपने स्वभाव का प्राश्रय करके सम्यग
दर्शनादि की प्राप्ति करना परम कर्तव्य है। प्रश्न (१२१)-महावत, सोलह कारण का भाव, दया, दान,
पूजा आदि का कैसा सम्बध है ? उत्तर-अनित्यतादात्म्य सम्बंध है अर्थात् नष्ट होने वाला
सम्बंध है। प्रश्न (१२२)-अनित्यतादात्म्य पूजा आदि भावों से मोक्ष
होना माने या इनके करते करते धर्म की प्राप्ति
हो जावेगी उसका फल क्या है ? उत्तर-निगोद की प्राप्ति है क्योंकि 'जो विमानवासी हूं थाय,
सम्यग्दर्शन बिन दुःख पाय । तहते चय थावर तन धरे,
यों परिवर्तन पूरे करे । प्रश्न (१२३)-ऐसी वस्तु का नाम बताओ जिसका आत्मा से
कभी प्रभाव ना हो और उसका फल क्या है ?
उत्तर-गुणों का कभी प्रभाव नहीं होता है-उन गुणों के प्रभेद
का माश्रय ले तो निर्वाण की प्राप्ति होती है।