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( ३८ ) (४)-भरत जी ने कैलाश पर्वत पर भूत भविष्य वर्तमान चौबीसी की स्थापना की थी वह कहाँ से पाई ? अज्ञानियों को जरा भी विचार नहीं आता है। (५)-उत्सपिणी प्रवसपिणी आदि छ: काल होते हैं
और चौथे काल में चौवीस तीर्थकर होंगे आदि न मानने से उल्टी मान्यता वाले कोई भी हों सब निगोद के पात्र हैं।
प्रश्न (९५)--सर्वज्ञ देव के विषय में श्री भगवान कार्तिकेय
स्वामी ने धर्म अनुप्रेक्षा में क्या बताया है ?
उत्तर-वास्तव में स्वामी कातिकेय प्राचार्य ने गाथा ३२१
३२२-३२३ में जैन धर्म का गूढ़ स्हस्य खोल दिया है। __ गा० ३२१ तया ३२२ में कहा है कि "जिस जीव को, जिस देश में, जिस काल में, जिस विधि से जन्ममरण, सुख-दु:ख तथा रोग और दारिद्रय इत्यादि जैसे सर्वज्ञ देव ने जिस प्रकार जाने हैं उसी प्रकार वे सब नियम से होंगे । सर्वज्ञदेव ने जिस प्रकार जाना है उसी प्रकार उस जीव के उसी देश में, उसी काल में
और उसी विधि से नियमपूर्वक सब होता है। उसके निवारण करने के लिए इन्द्र या जिनेन्द्र तीर्थकरदेव कोई भी समर्थ नहीं हैं। तथा गाथा ३२३ में कहा है इस प्रकार निश्चय से सर्वद्रव्यों (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म प्राकाश, काल) तथा उन द्रव्यों की समस्त पर्यायों को सर्वज्ञ के आगमानुसार जानता है-श्रद्धा करता है वह शुद्ध सम्यग्दृष्टि है, और जो ऐसी श्रद्धा नहीं