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तो केवली के जानने में और साधक ज्ञानी के जानने
में कोई अन्तर नहीं है ? उत्तर-जानने में कोई अन्तर नहीं, मात्र प्रत्यक्ष परोक्ष का
भेद है। प्रश्न (६२)-जितना केवली जानता है उतना ही साधक ज्ञानी
जानता है मात्र प्रत्यक्ष परोक्ष का भेद है यह बात
शास्त्रों में कहां २ आई है ? उत्तर-(१) अष्ट सहस्त्री दशम परिच्छेद-१०५ में पाया है।
(२) मोक्षमार्ग प्रकाशक पाठवां अधिकार पा० २७०
__ में आया है। (३) प्राचार्यकल्प पं० टोडरमल जी की रहस्यपूर्ण
चिट्ठी मे पाया है। (४) समयसार गा० १४३ की टीका तथा भावार्थ में
प्राया है
(५) समयसार कलश टीका कलश ११२ में पाया है प्रश्न (६३)-केवलज्ञान एक समय की पर्याय में सर्व द्रव्यों के
गुण पर्यायों को प्रत्येक समय में यथास्थित रुप से
जानता है ऐसा शास्त्रों में कहाँ कहाँ माया है ? उत्तर -(१) छ ढाला में "सकल द्रव्य के गुण अनन्त, परजाय
मनन्ता, जाने एके काल-प्रगट केवली भगवन्ता' (२) भगवान उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में "सर्व
द्रव्य पर्यायेषुकेवलस्य:' ऐसा कहा है ।