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प्रकार हमने छह द्रव्य जाने, इसके बदले कोई कम कहे या ज्यादा कहे तो वह सब झूठे हैं । इस प्रकार विश्व को जानने से यह चौथा लाभ रहा ।
प्रश्न (८६ ) - विश्व को जानने से पांचवा क्या लाभ रहा ?
उत्तर - कर्ता-भोक्ता की खोटी बुद्धि का अभाव और सम्यग्दर्शन की प्राप्ति, यह विश्व को जानने से पाँचवा लाभ रहा ।
प्रश्न (१०) -छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं इसको जानने से कर्ता- भोक्ता की खोटी बुद्धि का प्रभाव और सम्यग्दर्शन की प्राप्ति कैसे हो जाती है ?
उत्तर - केवली भगवान केवलज्ञान एक समय की पर्याय में तीन काल और तीन लोकवर्ती सर्व पदार्थों को (अनन्त धर्मात्मक सर्व द्रव्य गुण पर्यायों को) प्रत्येक समय में यथास्थित परिपूर्ण रूप से स्पष्ट और एक साथ जानते हैं, ऐसी मान्यता वाले को, क्या पर पदार्थो में कर्ता-भोक्ता को बुद्धि का भाव श्रावेगा ? आप कहेगें नहीं । जब कर्ता-भोक्ता बुद्धि का भाव नहीं आया तो दृष्टि कहाँ होगी ? आप कहेगें कि अपने त्रिकालज्ञायक स्वभाव पर । इस प्रकार विश्व को जानने से कर्ता-भोक्ता को खोटी बुद्धि का प्रभाव और सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न ( ११ ) - शास्त्रों में माता है जितना केवली जानता है उतना ही छदमस्थ साधक ज्ञानी जीव जानता है