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( २२ ) रनर--अज्ञान दशा में अज्ञानी जीव यह मानता था कि मैंने ।
गेहं इकट्ठ करे, मैंने माचीस की सींक इकट्ठी की, कूड़ा मैंने झाडू से साफ किया, कपड़े बिखरे पड़े थे मैंने उन्हें इकट्ठ कर दिये, परन्तु जब यह ज्ञान हा कि यह पु= जुड़ना, मिलना पुद्गल का स्वभाव है मेरा नहीं । ऐसा जानने से अनादि की पर में जुड़ाना मिलाना आदि बुद्धि का अभाव होकर ज्ञाता-दृप्टा बुद्धि
प्रगट हो गई यह लाभ हुआ। प्रश्न ४२)-गल' अर्थात् बिखरना से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-लड्डु, के दो टुकड़े 'गल' से हुए हैं। एक कलम की दो
कलम 'गल' से हुई है। दूध उफन कर निकला वह 'गल' से हुआ है। हजार का नोट जल गया वह 'गल' से हुआ है। घी जल गया वह 'गल' से हुा । बिखरना ढलना आदि पुद्गल के गल के कारण होता है जीव के कारण नही। यह बिखरना आदि पुद्गल का ही स्वभाव है. बिछडना पृथक होना आदि कार्य 'गल' स्वभाव के
कारण होते है जीव से नहीं । प्रश्न (४३)-'गल' को समझने से पात्र जीव को क्या लाभ
रहा? उत्तर-घी बिखर गया,चाय बिखर गयी इत्यादि अनादिकाल से
अज्ञानी अपने से होना मानता था उस खोटी बुद्धि का अभाव हो गया और बिखरना आदि 'गल' स्वभाव के कारण है मेरे से नहीं, मैं तो मात्र ज्ञायक हूं ऐसा पात्र जीव को लाभ हुआ।