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(१८६) णमन जीव के अशुद्ध उपादान से है और चारित्र मोहनीय का उदय अपने उपादान से है । । ई) श्रद्धा गुण के विभाव परिणमन में और दर्शनमोहनीय के उदय में निमित्त नैमित्तिक सम्बध है एक दूसरे के कारण नहीं है। (उ) चारित्र गुण के विभाव रुप परिणमन में और चारित्र मोहनीय का उदय में निमित्त-नैमित्तिक सम्बध है एक दूसरे के कारण
नही है प्रश्न (३६३)-कैसी बुद्धि छोड़नी है ? उत्तर--जीव के कषायभावों से, अनुभाग. स्थिति हुई औरजीव
के योगगुण कम्पन से प्रकृति, प्रदेश आया, यह अनादि की खोटा मान्यता छोड़नी है । और दोनों स्वतत्र अपने २ कारण से हे यह जानकर अपने अबंधस्वभावी भगवान का
पाश्रय लेना पात्र जीव का कर्तव्य है। प्रश्न (६६४)-अनुभाग और स्थिति बंध क्या बताता है। उत्तर जीवने कषायभाव किया, यह बताता है कराता नहीं है। प्रश्न (३६५:-प्रकृति और प्रदेश बंध क्या बताता है ? उत्तर-योग गुण में कम्पन है, यह बताता है. कराता नहीं है। प्रश्न (३६६)--द्रव्यकम और नोकर्म क्या बताता है ? उत्तर जीव में मूर्खता है, कराता नहीं है । जैसे हमारी गर्दन
टेड़ी हो तो शीशा यह बताता है कि गर्दन टेडी है परन्तु शीशा कराता नहीं है; उसी प्रकार द्रव्यकर्म, नोकर्म यह बताता है कि अभी सिद्ध दशा नहीं है, संसार दशा है,
परन्तु द्रव्यकर्म, नोकर्म कराता नहीं है। प्रश्न (३६७)-पुद्गल का निश्चय बंध क्या है। उत्तर-एक परमाणु में विशिष्ट प्रकार की पर्याय होती है वह
पुद्गल का निश्चय बंध है।