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उत्तर-“जीव और पुद्गल के निश्चय व्यवहार के बंध का
ज्ञान" यह दूसरे बोल का नाम है। प्रश्न (३५०)-जीव में निश्चय बंध क्या है ? उत्तर- प्रात्मा में रागद्वेषादि का बध होना यह जीव का
निश्चय बंध है। प्रश्न ( ३५१/-प्रात्मा और रागद्वेषादि में बंध की परिभाषा
कैसे घटेगी ? उत्तर-एक आत्मा है, दूसरा रागद्वेष है । यह दो चीजें हुई।
प्रात्मा और रागद्वेष मे एक पने का ज्ञान होता है तथा ज्ञानी दोनों का स्वरुप पृथक पृथक जानते है क्योकि रागद्वेषादि का स्वरुप बधस्वरुप और आत्मा का स्वरुप अबधस्वरुप चैतन्य स्वभावी जानते है। इसलिए प्रात्मा
और रागद्वषादि मे बधा की परिभाषा घटित होती है। प्रश्न (३५२)-जीव के निश्चय बध को जानने से ज्ञानीयो को
__ क्या लाभ है ? उत्तर- ज्ञानी तो चौथे गुणस्थान से दोनों को पृथक २ जानते
है और अपने चैतन्य स्वभावी में स्थिरता करके मोक्ष को
प्राप्त हो जाते हैं। प्रश्न (३५३)-जीव के निश्चय बध को जानने से अज्ञानी पात्र
जीवों को क्या लाभ है ? उत्तर---अज्ञानी अनादि से एक एक समय करके राग
हुषादि रुप ही अपने को जानता था जब उसने गुरु मे सुना रागद्वेषादि बंध स्वरुप पृथक है. भगवान प्रात्मा अवध स्वभात्री पृथक है तो अपनी प्रशारुपी छनी को अपनी ओर सन्मुख करके धर्म की प्राप्ति कर लेता है। और फिर वह भी ज्ञानी की तरह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है