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प्रश्न (३१८) --प्रवचनसार की ६६ बी 'गाथा का क्या रहस्य थोड़े में बताइये ?
उत्तर - सब द्रव्य सत् है । उत्पाद व्यय ध्रुव सहित परिणाम प्रत्येक द्रश्य का स्वभाव है । ऐसे स्वभाव मे निरन्तर वर्तता हुआ होने से, द्रव्य भी उत्पाद व्यय ध्रौव्य वाला है ऐसा गाथा में सिद्ध किया है । टीका में पांच बाते की है। (१) द्रव्य मे प्रभेद रूप से, अनादि अनन्त प्रवाह की एकता बताई और प्रवाह क्रम के सूक्ष्म अश वह परिणाम है यह बताया है । ( २ ) प्रवाह क्रम मे प्रवर्तता परिणाम परस्पर व्यतिरेक बताया । ( ३ ) सम्पूर्ण रूप से द्रव्य के त्रिकाली परिणामों को उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप सिद्ध किया द्रष्टान्त में द्रव्य के सब प्रदेशों को क्षेत्र अपेक्षा उत्पाद व्यय ध्रौव्य बताया । ( ४ ) एक ही परिणाम मे उत्पाद व्यय घ्रौव्यपना बताया हे द्रष्टान्त में एक एक प्रदेश में क्षेत्र अपेक्षा उत्पाद व्यय ध्रौव्य पना बताया है । ( ५ ) उत्पाद व्यय ध्रौव्य परिणाम के प्रवाह मे द्रव्य सदावर्तता है यह वस्तु स्वभाव है । यह सिद्ध किया है । प्रश्न (३१६) --प्रवचनसार की १०० वी गाथा मे क्या बनाया
है ? उत्तर- उत्पाद व्यय ध्रौव्य एक दूसरे विना होता नही है परन्तु एक ही साथ तीनों होते है । जैसे आत्मा में सम्यक्त्व का उत्पाद, मिथ्यात्व के व्यय बिना होता नही है । मिथ्यात्व का नाश सम्यक्त्व के उत्पाद बिना होता नहीं। और सम्यक्त्व का उत्पाद तथा मिथ्यात्व का व्यय यह दोनो आत्मा की ध्रुवता विना होता नहीं है । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु में और उसके गुणों में उत्पाद व्यय धौव्य तीनो एक ही