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प्रश्न ( ३३ ) क्या शुभभावों के श्राश्रय से धर्म की प्राप्ति नहीं होती ?
उत्तर - कभी भी नहीं होती है। जैसे लहसन खाने से कस्तूरी की डकार नहीं प्राती, उसी प्रकार शुभभावों से शुद्ध भावों की प्राप्ति नहीं होती है।
प्रश्न (३४) जो जीव शुभभावों से धर्म की प्राप्ति मानकर उसमें प्रधे हैं उन्हें जिनेन्द्र भगवान ने क्या कहा है ?
उत्तर (१) - प्रवचनसार गा० २७१ में "संसार तत्त्व" कहा है (२) समयसार में नपुंसक, मिथ्यादृष्टि, पापी, अभव्य प्रादि कहा है।
(३) पुरषार्थसिद्धिउपाय में "तस्य देशना नास्ति" कहा है ।
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प्रश्न (३५) - शुभ प्रच्छा और अशुभ बुरा ऐसा मानने वाले जीवों को भगवान ने क्या कहा है ?
उत्तर - प्रवचनसार गा० ७७ में भगवान कुन्दकुन्द स्वामी ने "घोर अपार संसार में भ्रमण करते हैं" ऐसा कहा है। प्रश्न ( ३६ ) क्या करें तो धर्म की प्राप्ति का अवकाश रहे ?
उत्तर - सूक्ष्म रीति से विश्व, द्रव्य, गुण, पर्याय का निर्णय कर तो धर्म की प्राप्ति का अवकाश है इसलिए अब यहां पर विश्व, द्रव्य, गुण, पर्याय का स्वरूप क्रम से प्रश्नोंत्तर के रूप में कहा जाता है।