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( ११ ) (४) भाव बंध = शुभाशुभ भावों में भटकना वह भाव
बध हैं। (५) भाव सम्वर=शुभाशुभ भावों का रुकना और
शुद्धि का प्रगट होना वह भाव सम्वर है। (६) भाव निर्जरा=अशुद्धि की हानि और शुद्धि की
वृद्धि वह भाव निर्जरा है।। (७) भाव मोक्ष परिपूर्ण अशुद्धि का अभाव भोर
परिपूर्ण शुद्धता की प्रगटता वह भाव मोक्ष है। प्रश्न (३१)-संवर निर्जरा और मोक्ष की प्राप्ति किसके प्राश्रय
से होती है और किसके आश्रय से नहीं होती ? उत्तर-एक मात्र अपने त्रिकाली भूतार्थ स्वभाव के प्राश्रय
से ही सम्बर निर्जरा मोक्ष की प्राप्ति होती है नौ प्रकार के पक्षों से कभी भी नही होती है इसलिए पात्र जीवों को एकमात्र भूतार्थ स्वभाव का ही प्राश्रय करना चाहिए ऐसा जिन, जिनवर और जिनवर वृषभों
का आदेश है। प्रश्न । ३२)-साततत्वों में हेय, उपादेय, जय कौन कौन
से तत्त्व है ? उत्तर-(१) जीवाश्रय करने योग्य परम उपादेय
(२) अजीव-ज्ञेय (३) प्रात्रव और बंध हेय और अहितरुप (४) सम्बर निर्जरा-प्रगट करने योग्य उपादेय (५) मोक्ष = पूर्ण प्रगट करने योग्य उपादेय