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( १३३ ) उत्तर-(१) चौथे गुणस्थान में श्रद्धा गुण की स्वभावअर्थ
पर्याय पूर्ण प्रगट हो जाती है तथा बाकी गुणों में जितनी जितनी शुद्धि है वह स्वभावअर्थ पर्याय है जितनी जितनी अशुद्धि है वह विभावप्रर्थ पर्यायें हैं। (२)-बारहवें गुण स्थान में चारित्र गुण की पूर्ण स्वभाव
अर्थ पर्याय प्रगट हो जाती है । ज्ञान, दर्शन, वीर्यआदि गुणों मे जितनी कमी है, वह विभाव अर्थ पर्याय है और जितनी शुद्धि हैं वह स्वभावअर्थ
पर्यायें हैं। (३) १३ वें गुणस्थान में ज्ञान दर्शन वीर्य की पूर्ण स्व
भावप्रर्थ पर्याय प्रगट हो जाती है योग गुण आदि
मे विभाव अर्थ पर्यायें हैं। (२) १४ वें गुणस्थान में योग गुण की स्वभावअर्थपर्याय
पूर्ण प्रगट हो जाती है अभी वैभाविक गुण क्रियावती शक्ति, अव्याबाध, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व, सूक्ष्म
त्व आदि गुणों की विभावअर्थ पर्यायें होती हैं । (५) १४ वें गुणस्थान के अन्त में वैभाविक गुण, क्रिया
वती शक्ति, अव्याबाध, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व, सूक्ष्मत्व आदि गुणों की परिपूर्ण स्वभावअर्थ पर्यायें
प्रगट हो जाती हैं। प्रश्न (४८)-शास्त्रों में माता है कि मिथ्यादृष्टि के भी अस्ति
त्वादि गुणों की शुद्ध पर्यायें होती है तब आपने मिथ्यादृष्टि को स्वभाव पर्यायें क्यों नही बतलाई,
ऐसा क्यों ? उत्तर-जैसे किसी के घर में खजाना दबा पड़ा है, परन्तु