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प्रश्न (२०४) जहां व्यवहार कथन हो वहां क्या अर्थ करना
चाहिये ? उत्तर जहां व्यवहार से कथन हो उसका अर्थ · ऐसा है नहीं
किन्तु निमित्तादि की अपेक्षा कथन किया है" ऐसा जानना चाहिए।
(२) निमित्त की मुख्यता से कथन होता है किन्तु निमित्त की मुख्यता से कार्य नहीं होता है ऐसा
न्यवहार कथन का अभिप्राय समझना चाहिए। प्रश्न (२०५ --सर्वज्ञ देव का वीतरागी भेद विज्ञान क्या है ? उत्तर-जगत में छहों द्रव्य एक ही क्षेत्र में विद्यमान होने पर
भी कोई द्रव्य दूसरे द्रव्य के स्वभाव को स्पर्श नहीं करता; । प्रत्येक द्रव्य अपने अपने उत्पाद-व्यय ध्रौव्य रुप त्रिस्वभाव में ही वर्तता है, इसलिए प्रत्येक द्रव्य अपने स्वभाव को ही स्पर्श करता है-यह है सर्वज्ञ देव
कथित वीतरागी भेद विज्ञान ! प्रश्न (२०६)-सर्वज्ञ देव कथित वीतरागी भेद विज्ञान को
मानने से क्या लाभ होता है ? । उत्तर - (१) निमित्त उपादान का सही स्पष्टीकरण इसमें
आ जाता है उपादान और निमित्त यह दोनों पदार्थ एक साथ प्रवर्तमान होने पर भी, उपादान रुप पदार्थ अपने उत्पाद-व्यय ध्र वतारूप स्वभाव को ही स्पर्श करता है निमित्त को किंचित् मात्र भी स्पर्श नहीं करता
(२) निमित्त भूत पदार्थ भी उसके अपने उत्पाद-व्यय ध्रुवता रूप स्वभाव का ही स्पर्श करता है उपादान को वह किचित् मात्र भी स्पर्श नहीं करता।