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कर्म चक्कर कटाता है आदि व्यवहार कथन है । प्रश्न ( २०२ ) - व्यवहार कथन को जैसा का तैसा अर्थात् साचा कथन माने तो क्या होगा ?
उत्तर- (१) पुरषार्थसिद्ध उपाय में "तस्य देशना नास्ति" कहा है ।
(२) समयसार कलश ५५ में "यह अज्ञान अधकार है उसका सुलटना दुनिवार है"
(३) प्रवचनसार में " पद पद पर धोखा खाता है"
(४) उसके सर्व धर्म के अंग अन्यथा रूप होकर मिथ्या भाव को प्राप्त होते है ।
प्रश्न (२०३ ) - व्यवहार के कथन को सच्चा मानने वाले को " तस्य देशना नास्ति" आदि क्यों कहा ? उत्तर- "व्यवहारनय स्व- द्रव्य श्रौर पर द्रव्य को, स्वद्रव्य के भावों को और पर द्रव्यों के भावो को तथा कारण कार्यादिक को किसी को किसी में मिलाकर निरुपण करता है। श्रतः व्यवहार के कथन का वैसा का वैसा श्रद्धान करने से मिथ्यात्व दृढ़ होता है इसलिए उस श्रद्धान का त्याग करना । और निश्चयनय स्वद्रव्य और पर द्रव्य को, स्व द्रव्य के भावों को और पर द्रव्यो के भावों को तथा कारण कार्यादिक को किसी को किसी में मिलाकर निरुपण नहीं करता है उसके श्रद्धान से सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है |
इसलिए व्यवहार के कथन को सच्चा मानने वाले को 'तस्यदेशनानास्ति' प्रादि शब्दों से प्राचार्यो ने सम्बोधन किया है ।