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( ६३ ) कहा है कि "तस्य देशना नास्ति अर्थात् वह भगवान की वाणी सुनने लायक नहीं है।" (४) जो निमित्त कारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे आत्मावलोकन मे कहा है कि "यह उनका हरामजादीपना
प्रश्न १००-चारित्रगुण त्रिकाला उपादानकारण और राग उपादेय । इसका समझने से क्या लाभ हमा?
उत्तर-(१) घडा, चाक, कोली, डडा, हाथ आदि निमित्त कारणो से राग हुआ ऐसी खोटी मान्यता का अभाव हो जाता है। (२) आत्मा में अनन्त गुण है। उनमे से चारित्रगुण को छोडकर दूसरे गुणो से दृष्टि हट जाती है। (३) अब यहाँ पर राग के लिए मात्र त्रिकाली उपादान कारण चारित्र गुण की तरफ देखना रहा । इतना लाभ हुमा।
प्रश्न १०१-कोई चतुर प्रश्न करता है कि चारित्रगुण राग का कारण हो तो सिद्धो को भी राग होना चाहिये। घड़ा, चाक, कोली, डंडा, हाय आदि निमित्तकारण हो तो राग हो। आप कहते हो राग का (कार्य का) निमित्तकारणों से कोई सम्बन्ध नहीं है, तो चारित्रगुण उपादानकारण और राग उपादेय। यह आपकी बात झूठी साबित होती है ?
उत्तर-अरे भाई हमने चारित्र गुण को राग का उपादान कारण कहा है। वह तो घडा, चाक, कीली, डडा, हाथ आदि निमित्त कारणो से पृथक् करने की अपेक्षा से कहा है। वास्तव मे चारित्र गुण भी राग का सच्चा उपादान कारण नही है।।
प्रश्न १०२-चारित्रगुण भी राग का सच्चा उपादानकारण नहीं है तो राग का सच्चा उपादानकारण कौन है ?
उत्तर-चारित्रगुण मे अनादिकाल से पर्यायो का प्रवाह चला आ रहा है। मानो दस नम्बर पर राग हुआ तो उसमे अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण राग का यहाँ पर सच्चा उपादान कारण है।
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