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( २ )
उत्तर- ( प्रश्न ५६ से ८० तक के अनुसार उत्तर दो)
कुम्हार ने चाक, कीलो, उडा, हाथ आदि से घड़ा बनाया । "इस वाक्य मे से "अज्ञानी कुम्हार" पर उपादान - उपादेय के २५ प्रश्नोत्तरो के द्वारा स्पष्टीकरण
प्रश्न ६७-घडा, चाक, कोली, डंडा, हाथ आदि उपादानकारण और राग उपादेय | क्या यह उपादान- उपादेय का ज्ञान ठीक है? उत्तर - बिल्कुल ठीक नही है । क्योकि यहाँ पर चारित्र गुण 'त्रिकाली उपादानकारण और राग उपादेय है ।
प्रश्न ६८- यदि कोई चतुर घडा, चाक, कोली, डडा, हाथ आदि उपदान कारण और राग उपादेय, ऐसा हो माने तो क्या दोष आता है ?
उत्तर- घडा, चाक, कीली, उडा, हाथ आदि नष्ट होकर चारित्र गुण बन जावे तो ऐसा माना जा सकता है कि घडा, चाक, कीली, डडा, हाथ आदि उपादान कारण और राग उपादेय । लेकिन ऐसा नही हो सकता । क्योकि उपादान- उपादेय तत्स्वरूप मे ही ( अभिन्न सत्ता वाले पदार्थो मे ही) होता है। जिनकी सत्ता-सत्व भिन्न-भिन्न हैं ऐसे दो पदार्थों में उपादान - उपादेय नही होता है ।
प्रश्न ६६-- जो घडा, चाक, कोली, डडा, हाथ आदि निमित्त कारणो को ही राय का सच्चा कारण मानते है । उन्हे जिनवाणी में किन-किन नामो से सम्बोधन किया है ?
उत्तर- ( १ ) जो निमित्त कारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हें समयसार कलश ५५ मे कहा है कि "उनका सुलटना दुर्निवार है और यह उनका अज्ञान मोह अन्धकार है ।" (२) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते है उन्हे प्रवचनसार गाथा ५५ मे कहा है कि "वह पद-पद पर धोखा खाता है ।" ( ३ ) जो निमित्त कारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते है । उन्हे पुरुषार्थ सिद्धयुपाय गाथा ६ मे