________________
( ८५ )
स्वत अपने परिणमन स्वभाव के कारण करता रहा है, करता है और भविष्य मे करता रहेगा । ऐसा वस्तु स्वरूप है । इसी कारण अनादि काल से चाक, कोली, ढडा हाथ आदि आहारवर्गणा के स्वधो मे पर्यायो का प्रवाह चला आ रहा है ।
प्रश्न ६६ - अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण और चाक, कोली, डडा, हाथ आदि कार्य उपादेय। इसको मानने से क्या लाभ हुआ ?
उत्तर - (१) भूत-भविष्यत् की पर्यायों से दृष्टि हट गई । (२) चाक, कीली, ढडा, हाथ आदि आहारवर्गणा के स्कध जो पहले त्रिकाली उपादान कारण था, वह भी अब व्यवहार कारण हो गया । (३) चाक कीली, डडा, हाथ आदि कार्य के लिए अब यहाँ पर मात्र अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादानकारण की तरफ देखना रहा । यह लाभ हुआ ।
प्रश्न ६७ - कोई चतुर फिर प्रश्न करता है कि - अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नहीं होती है और पर्याय मे से पर्याय नहीं आती - ऐसा जिनवाणी में कहा है। फिर यह मानना कि अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादानकारण और चाक, फीली डंडा, हाथ आदि कार्य उपादेय । यह आपको बात झूठी साबित होती है ? उत्तर -- अरे भाई - अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नही होती है और पर्याय मे से पर्याय नही आती है । यह बात जिन वाणी मे विल्कुल ठीक है । परन्तु हमने तो कार्य से पहिले कौन सी पर्याय होती है उस की अपेक्षा अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर को चाक, कोली, 'डा, हाथ आदि कार्य का उपादान कारण कहा । परन्तु अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर भी चाक, कीली, डडा हाथ आदि कार्य का सच्चा कारण नही है |
प्रश्न ६८- अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर चाक, कोली,